Monday, February 11, 2013

आचरण

पदार्थ अवस्था को देखते हैं...आचरण निश्चित (कभी भी लोहे का परमाणु आपसे नहीं कहेगा कि आज तो रविवार है आज मैं अपना लोहे का स्वभाव (संगठन विघटन) नहीं निभाऊंगा थक गया हूँ या फिर आज तो मैं विद्रोह करने के मूड में हूँ. क्या सबूत है? सबूत यह है कि तभी आप अपनी छत पर विश्वास कर पाते हैं. और उसके नीचे रह पाते हैं आपको किसी प्रकार का भय नहीं रहता. 

अब देखते हैं प्राण अवस्था, मतलब कोशिकाओं से बनी संरचना...इसमें पेड़ पौधे से लेकर आपका शरीर भी आता है, इनका भी आचरण निश्चित है...कैसे? आम के बीज से आम ही निकलेगा  और भाई यदि इनका आचरण निश्चित नहीं होता तो आपका इतना बड़ा और व्यवस्थित शरीर नहीं दिखता, सोचो तो अगर आपको यदि आपके शरीर के निर्माण की जिम्मेदारी मिल जाये तो आप क्या कर पायेंगें? इतनी सारी कोशिकाओं को और उनसे बनी संरचनाओं का निर्माण तो आप दुनिया के किसी भी फैक्ट्री में भी नहीं कर सकते.हमको तो बस उस व्यवस्था को समझना है, मानना है, पहचानना है और फिर निर्वाह करना है मतलब हम कैसा कार्य करें कि वह व्यवस्था बनी रहे..बस! इतना ही तो करना है. यहाँ इनका स्वभाव (सारक- मारक) निश्चित है. सारक मारक मतलब कि एक कोशिकाएं या तो दूसरी कोशिका का पोषण करती है या तो उसे मार देती है
जैसे: आप आपके शरीर के लिए आम, अमरुद सारक हुआ पर धतूरा मारक.
और जैसे "O " blood group सभी रक्त समूह के लिए सारक जबकि वहीँ पर बाकि रक्त समूह "O" blood group के लिए मारक.

अब देखते हैं जीव अवस्था को तो यहाँ भी हम पाते हैं कि हर जीव का आचरण निश्चित है, शेर माँस खाता है और गाय घास. जैसे इनका भी स्वभाव देखते हैं "क्रूर- अक्रूर " मतलब शेर अपने बच्चे के लिए तो अक्रूर है पर दूसरे जानवर के लिए क्रूर है.

अब देखते हैं स्वयं को अर्थात मानव जाति को :)
क्या लगता है इनका आचरण निश्चित है ? हाँ... तो आपके लिए कोई उत्तर नहीं और यदि उत्तर नहीं में है तो आप पूछेंगें कैसे आचरण निश्चित नहीं है?
देखते हैं...
क्या आप अपने अपनों पर विश्वास कर पाते हैं? क्या आप अपने बच्चों पर विश्वास कर पाते हैं? क्या आप अपने सगे सम्बन्धियों, पड़ोसियों पर विश्वास कर पाते हैं? क्या आप स्वयं पर विश्वास कर पाते हैं? नहीं ना! कहीं ना कहीं आप चुप हो जायेंगें.
अगर हमारा आचरण निश्चत होता तो हम आज भय में नहीं जीते, आराम में होते, किसी बात का तनाव नहीं होता, हम विश्वास पूर्वक सबंधों में जी पाते, हमारा लक्ष्य तब मानव जाति के साथ सम्पूर्ण अस्तित्व को समझकर जीने में होता अभी तो हमने अपना ज्यादा से ज्यादा समय दूसरों से लड़ने में बिताया और बिता रहे हैं
हम सुखी कब होते हैं? जब मानव मानव के साथ व्यवहार सही हो और शेष प्रकृति के साथ हमारा कार्य आवर्तनशीलता (recycle) को ध्यान में रखते हुए हो.
आज सबसे ज्यादा मानव को मानव से भय है बाकि ३ अवस्थाओं से कोई खतरा नहीं...
तो आज कहाँ सबसे ज्यादा श्रम करने की आवश्यकता है ?
मानव के साथ संबंध सुधारने पर या प्रकृति पर?

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