Saturday, August 28, 2010

प्रेम किससे? मुझसे या......

जी हाँ आज प्रकृति यही सवाल हर एक मनुष्य से कर रही है....तुम्हारे लिए कौन महत्वपूर्ण है मैं या तुम्हारा स्वार्थ ? इस धरती में रहने वाला हर इन्सान इस प्रकृति से होने वाले अत्याचार के प्रति जिम्मेदार है करने वाला भी और चुप रहने वाला भी। देखिये इस धरती के सबसे बुद्धिमान कहे जाने वाले मनुष्य की करतूत......














इन चित्रों को शब्दों की जरूरत नहीं! प्रकृति अपने दर्द को शब्दों में बयां नहीं कर सकती उसे समझने के लिए भावनात्मक हृदय चाहिए .........

Friday, August 20, 2010

तुम कैसे.....?

(मुफ्त में तो नहीं बाँट सकते अनाज: पवार)
*तुम कैसे भोजन कर लेते हो जबकि इस देश में करोड़ों लोग भूखे हों और तुम्हारे भोजन की व्यवस्था करने वाले किसान आत्महत्या कर रहे हों?
*तुम कैसे गहरी नींद ले लेते हो जबकि लाखों लोगों के पास बिस्तर क्या रहने को घर नहीं?
*तुम कैसे हँस लेते हो जबकि तुम्हारी सुरक्षा में लगे जवान अपनी जान भी गँवा देते हैं और उनके अपनों के आँखों में आंसू होते हैं?
*तुम कैसे गुलामी का प्रतीक "राष्ट्रकुल खेलों" के आयोजन में जनता का पैसा लगा देते हो जबकि हजारों लोग अव्यवस्था और प्राकृतिक आपदा से बर्बाद हो रहे हैं?
*तुम कैसे स्वस्थ रह सकते हो जबकि देश प्रदूषण और कुपोषण की समस्या से ग्रस्त हो?
*तुम कैसे गौ माता का दूध (अमृत) और इनसे बनने वाली वस्तुओं का सेवन कर लेते हो जबकि कत्लखानों में इन्हें मांस और चमड़े के लिए मार दिया जाता है।
*तुम कैसे अपनी माँ- बहनों को सुरक्षित रख सकते हो जबकि जगह -जगह देवालय की जगह मदिरालय बना रखे हो?
*तुम कैसे घर में उद्यान बनाकर चैन की नींद सो सकते हो जबकि इस धरती माँ के उद्यान (जंगल/वन) बहुराष्ट्रीय कंपनियों के पेट भरने हेतु खनिजों के अवैध उत्खनन से बर्बाद हो रहे हों?
*तुम कैसे स्वच्छ पानी पी सकते हो और पवित्र नदियों में स्नान कर सकते हो जबकि तुम्हारे द्वारा खड़े गए शहर और औद्योगिक कारखानों के जहर इसे जहरीला बना रहे हैं जिससे मनुष्य ही नहीं जलचर भी प्रभावित हो रहे हैं?


मत भूलो तुम कि तुम्हें इस कुर्सी पर जनता ने भोग करने के लिए नहीं बिठाया है। राजनीति करना छोड़कर राज्य के लिए नीतियाँ बनाओ ताकि राज्यों का समुचित विकास हो।
यह सिर्फ नेता ही नहीं संपन्न वर्ग के जनता पर भी लागु होता है कम से कम एक परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी नि:स्वार्थ भावना से ले लें। बच्चों की शिक्षा और भोजन की व्यवस्था कर दें आखिर हम सब एक हैं एक ही ईश्वर की संतान हैं।
संपन्न बनना हो तो अपने संस्कार को और पुख्ता करो और अपने आध्यात्मिक गुणों का विकास करो स्वयं को जानो और सृष्टि के अच्छे के लिए कार्य करो। यही संस्कार रूपी संपत्ति अगले जन्म में तुम्हारे साथ जाएगी बाकि सब यहीं रह जायेगा।

"माटी के पुतले तुझे कितना गुमान है
कौन जग में किसका होता है
मुफ्त में क्यों जन्म गंवाता है?"