Thursday, November 14, 2013

व्यवस्था या अव्यवस्था?

एक एक ईंट को सजा कर घर बनाने में लग जाते हैं कई साल...
उसे तोड़ने में लगते हैं मात्र १ या ३ दिन|

शरीर की व्यवस्था बनाये रखने में लगते हैं प्रतिदिन संयम और सुन्दर भावों/ मूल्यों का बहाव...
शरीर की इस व्यवस्था को बिगाड़ने के लिए चाहिए मात्र एक ऋणात्मक आवेश (बुलडोजर चलाने जैसा)...
क्या चाहिए? व्यवस्था या अव्यवस्था? आपके हाथ में है सब कुछ|

ईर्ष्या, शिकायत भाव भी एक प्रकार का आवेश ही है इस प्रकार के ऋणात्मक भावों में जीने वाले मानव तो मुझे कभी आबाद नहीं दिखे...
क्यों ना हम इसके बजाय स्वागत और प्रेम भाव से भरे हुए हों?

अव्यवस्था से प्रभावित या पीड़ित होना भी एक प्रकार का आवेश ही तो है इससे प्रभावित होने की बजाय समझ, समाधान पर कार्य- व्यवहार किया जाए|

इतना महत्वपूर्ण मानव तन मिला है उसे इस तरह व्यर्थ में क्यों गवाएं?
क्यों ना इसकी सार्थकता/ सदुपयोगिता पर ध्यान दिया जाये?

Thursday, October 17, 2013

संवेदनशीलता



जी संवेदनशीलता ऐसा शब्द है जिसके बगैर आप किसी मानव को मानव ना कहकर हैवान कहेंगें...यदि यह संवेदनशीलता समझ के अनुसार चलने लगती है तो कहलाता है "संज्ञानशीलता"|
मैंने यह विषय इसलिए चुना क्योंकि  मैंने यह कई बार एहसास किया कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमें कहीं बेहद दूर लेकर जा रही है...
मैंने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी "मनुष्य शाकाहारी या मांसाहारी?"
इस पोस्ट को मैंने इसी ब्लॉग पर भी शेअर किया था..
http://life-chetna.blogspot.in/2010/01/blog-post_23.html

तो इस पोस्ट को एक मेरी फेसबुक मित्र ने चर्चा का विषय बनाया और उसमें आमंत्रित किया| यह सब एकदम से अचानक हो गया मैं इस डीबेट के लिए तैयार नहीं थी फिर भी शामिल हुई..

तो एक लंबी और मानसिक तनाव देती एक चर्चा से पहली यह बात निकल कर आई कि मनुष्य "सर्वाहारी" (Omnivorous) है और उसमें (मनुष्य में ) ऐसे सारे एंजाइम होते हैं जो मांस का पाचन कर सकते हैं...जब मैंने यह पूछा कि जैसे हम फलों का सेवन ऐसे ही बगैर पकाए कच्चा या फिर जूस निकाल कर कर सकते हैं वैसे क्या आप एक गाय, बकरी आदि का कर सकते हैं? तो कहा गया कि एक मानव को एक मांसाहारी की तरह नहीं रहना चाहिए वह एक सर्वाहारी है और हमें वह जो भी खाता है उसका सम्मान करना चाहिए...

और एक प्रश्न मुझसे पूछा गया कि एक जीव की हत्या से आपको दुःख होता है पेड़-पौधे में भी तो जीवन होता है उसे काटने में आपको दुःख क्यों नहीं होता?
अब देखते हैं "सर्वाहारी" मुझे जितनी सूचना प्राप्त है सर्वाहारी "Omnivorous" अर्थात जो सब कुछ खा सकता है..सब कुछ खा लेना मतलब तो और भी ज्यादा घिनौना हो गया...मैंने एक सर्वाहारी के अंतर्गत एक उदाहरण पढ़ा था "कॉकरोच" ...तो क्या हम अब कॉकरोच के तुल्य हो गए हैं? इतना भी मत गिराओ भाई मानव को...मांसाहारी तो फिर भी ठीक- ठाक है|

अच्छा तो एक दूसरा प्रश्न था पेड़ पौधे को जब हम काटते हैं तो वह पीड़ित नहीं होता उसे दर्द नहीं होता...जैसे एक जीव को होता है उसमें भी तो जान होता है...तो यह प्रश्न बेहद महत्वपूर्ण है और इसका उत्तर भी है पर समय आने पर इस बातचीत होगी...इस प्रश्न को कृपया भूलें नहीं।

एक और कमेन्ट था..anything that your body can digest and gives you energy is food . any food that suits your taste can be and should be consumed to satisfy your hunger and drives arising due to it. Any food consumed in excess is harmful even "milk" or even "rice". God has given you brain, chose your own food instead of debating here. Best practices are to learn from others mistake. Never consume food that has an history of harming human race (people similar to you). Its not about being VEG or NONVEG its about chosing the best amongst what you have been bestowed by the almighty.

God has given you brain--- ठीक है भगवान ने आपको दिमाग दिया है (भगवान कौन है कैसा है? कभी देखा है?) चलिए ठीक है...अब आपको एक विकसित दिमाग मिल ही गया है तो दूसरों की गलती देख कर सीखने के लिए? कि समझ पूर्वक चलें ताकि गलती हो ही ना...ध्यान से सोचने की बात है..जब आपसे कोई यह कहे कि मैं हर दिन एक सेब या केला सबेरे सबेरे खाता हूँ तो आप खुश होंगे और उसकी प्रशंसा भी करेंगें कि वाह भाई तुमने तो अपनी सेहत का अच्छा ध्यान रखना सीख लिया...पर कोई आपसे यह कहे कि मैं रोज सबेरे एक गाय/ बकरे/मुर्गी या कुत्ता/बिल्ली/छिपकली (जैसा चीन में होता है) का रोज एक गिलास खून (जूस) पीता हूँ तो आप क्या कहेंगें? यह तो पागल है या फिर हैवान कहेंगें ना?

जब मैंने ऐसा ही प्रश्न किया तो उत्तर मिला..."don't compare sabji with jeew ka khoon... there are medicines and drugs that you intake made from raw blood cells of animals.. there is a lot to learn.. first understand that an omnivorous is actually a herbivorous who can eat and digest non veg too!"
एक गिलास सब्जी या फल की रस के बजाय मैं अगर एक गिलास जीवों का खून पीने को कहूँ तो वे गुस्सा हो जाते हैं..इसका मतलब है कि फलों का रस पीना हमारे लिए "सहज" है अत: स्वीकार्य है और जो सहज नहीं है वह हमें स्वीकार नहीं..यही पीड़ा का कारण है...

अब ये कहते हैं कि दवाइयों में इनके खून का प्रयोग होता है..ये तो और भी भयंकर बात है...और हमने कई बार बताया भी नहीं जाता कि आपको जो दवाइयाँ दी जा रही है वह "शाकाहारी" या "मांसाहारी" है| मुझे इस प्रकार के प्रयोगों की आवश्यकता भी नहीं लगती| हमने जिस चीज के लिए जीवों की हत्या की उसके साथ कई प्रकार के अमानवीय प्रयोग कर रहे हैं वह बेहद दुखद है| कॉस्मेटिक के लिए इन बेजुबानों पर प्रयोग किये जाते हैं...तो जो चीज चाहिए वह पौधों से भी मिल जाता है..जैसे "ओमेगा ३ " के लिए एक मछली शायद "साल्मोन" को मारा जाता है जबकि यह ओमेगा ३ "अलसी" के बीज में मिल जाता है...

ये दुहाई देंगें कि मानव जाति की सुरक्षा के लिए ऐसा करना हमारी मजबूरी है...पर यह मजबूरी नहीं यह पूरी तरह से लाभ दृष्टि है..और इस दृष्टि के चलते ये कब "मानव " को मार कर दवाइयाँ बनाने लगे कह नहीं सकते...इनमें दया नाम की कोई चीज नहीं दिखती..

जब मैंने कहा इस जीव की आँखों में झांको फिर तुम कभी उसे मार नहीं सकते...तो ये Higher study बच्चे का कमेन्ट देखिये..."gulab ka fool kabhi apne gamle se tod kar bhagwaan ko chadhaya hai? mujhe to bahut dukh hota hai.. haan par bazaar se khareed ke kayee baar chadhaya hogaa.. mujhe bazaar me khade bakre ki aankh me to kuchh nazar nahi aataa shayad main kahaniyaa achhe nahi bana pata isliye :P "

अब इस मानव की दृष्टि देखिये  सबसे पहले तो उसने सामने वाले की भावना को समझने का प्रयास ही नहीं किया...और इन्हें बाज़ार में खड़े बकरे में केवल अपना भोजन नज़र आता है..उसने कभी यह समझने का प्रयास नहीं किया कि यह बेजुबान जीव में अगर कुछ हरकत हो रही है तो वह क्यों? आखिर उसमें ऐसा क्या चीज है..हम सबके पास कोई ना कोई पालतू पशु होंगे या फिर रोज आपके घर के पास एक गाय खड़ी होती है...इस इंतज़ार में कि उसे कोई एक रोटी दे दे..उसकी आँखों में मुझे तो एक चमक नज़र आती है...पाबला भैय्या (ब्लॉगर) का मैक देखो कितनी बदमाशी करता है.. भैय्या कितने बार उसकी पोस्ट शेअर करते हैं  आखिर कुछ तो है ना उस जीव में कि हम उससे प्रेम करते हैं और यदि आप उसे भाव को नहीं समझ सकते तो यह "मानवीय गुण है अमानवीय" इसे जांचने की जरुरु़त है|

इस चर्चा ने मुझे यह सोचने पर और मजबूर कर दिया कि हम बच्चों को क्या शिक्षा दे रहे हैं? जितनी ज्यादा डीग्री उतने ही असभ्य होते जा रहे हैं? संस्कार तो किसी में नहीं दिखता..अगर अच्छी प्रवृत्ति भी है भी तो वह उनके खुद के पिछले शरीर यात्रा और परिवार से मिली शिक्षा के कारण ही है ऐसा मेरा "मानना" है "जाँचना" अभी शेष है..वर्तमान शिक्षा प्रणाली से तो यह असम्भव है...

मुझे याद आता है ९वी कक्षा में हमें एक मेढक दिया गया था डिसेक्शन के लिए...उसे हमारे ही सामने क्लोरोफार्म से बेहोश किया गया..फिर सबके ट्रे में एक एक मेढक...बेहद दुखद क्षण था..मैंने तो यह अपने इच्छा विरुद्ध कार्य किया था..मेरी एक सहेली थी अंजू उसके ट्रे के मेढक को होश आ गया वह अपना मुँह खोलने बंद करने लगा उसे देख अंजू घबरा गई उसने कहा" मैम इसे होश आ गया..." इस टीचर ने जो कहा वह मुझे आज तक याद है.."उसका हार्ट काट कर फेंक दो"

"उसका हार्ट काट कर फेंक दो"? यह वाक्य जैसे तीर सा चुभा..क्या यही हमारी जिम्मेदारी है हम कितने गैर जिम्मेदार हो गए हैं? यह शिक्षक मुझे आज तक याद है क्योंकि उसने एक गैर जिम्मेदाराना बयान व्यक्त किया था..

और मुझे इसकी अनावश्यकता का अहसास तभी हो गया था..हमें इसकी आवश्यकता ही नहीं..छोटी सी कक्षा से बच्चों से डिसेक्शन करवाना उसे अमानवीयता और असंवेदनशील बनाने की ओर पहला कदम है...हर बच्चा डॉक्टर नहीं बन सकता..और जो बच्चे मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं उन्हें प्राकृतिक या फिर किसी दुर्घटना में शिकार हुए मृत जानवर का शरीर उपलब्ध करवाया जा सकता है|  

कुल बात वर्तमान शिक्षा प्रणाली कैसा मानव तैयार कर रही है यह बेहद चिंतनीय विषय है इस पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है..
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“The simplest acts of kindness are by far more powerful then a thousand heads bowing in prayer.”
― Mahatma Gandhi

(चित्र गूगल से... आभार...)

Saturday, September 28, 2013

संगीत


एक संगीत सभा का महाआयोजन था..वहाँ एक से बढ़ कर एक वाद्य यन्त्र, गायक और नृत्य में पारंगत महारथी थे .. आयोजन शुरू हुआ..पर यह क्या सब अपनी अपनी धुन में यंत्रों को बजाने लगे, सभी गायक अपने- अपने गीत गाने लगे और नृत्य में पारंगत सभी महारथी अपने अपने पसंदीदा धुनों पर नृत्य करने लगे...
अब आप इसे संगीत कहेंगे या शोर?
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इस धरती में रहने वाले लोगों का भी यही हाल है..ये सभी "सत्य" की परिभाषा अलग अलग माने बैठे हैं. बाकी ३ अवस्था (पदार्थ, प्राण और जीव ) तो उस वास्तविकता/ सत्य के संगीत में रंगे हुए हैं पर जब से मानव अस्तित्व में आया तब से संगीत दिन ब दिन बेसुरा होता जा रहा है...
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जबकि वास्तव में "सत्य" एक ही है उससे निकलने वाली ताल भी एक ही है..यह जैसा है वैसा ही रहेगा ...यह पहले भी था, अब भी है और कल भी ऐसा ही रहेगा..यह "नित्य वर्तमान" है.

हम सभी को इस ताल के अनुसार होना है तभी एक मधुर संगीत का सृजन होगा और इस अस्तित्व द्वारा आयोजित संगीत सभा की कभी ना खत्म होने वाली एक शानदार शुरुआत होगी ....


(चित्र गूगल से..आभार) 

Friday, September 13, 2013

टापू और मानव

समंदर के बीच एक छोटा सा टापू था जिसमें मुश्किल से कोई १००-२०० लोग रहते थे.
इस सुन्दर टापू में आराम से खुशी खुशी इनका गुजर बसर चल रहा था..समस्याएँ थी पर इतनी कि वह गौण की जा सकती थी...
इनमें से कुछ लोगों के २ समूह थे जो इतने में खुश नहीं थे. वे कुछ और करने की इच्छा रखे हुए थे.
एक समूह के लोगों ने उस टापू में एक जगह जिज्ञासावश खोदना शुरू किया उन्हें कुछ चमकीले पत्थर मिले उसे अन्य लोगों को दिखाया तो कईयों ने उस एक चमकीले पत्थर के बदले उन्हें बहुत सारी खाने - पीने की वस्तुएँ दी फिर धीरे धीरे वस्तु के बदले कोई कागज जैसा प्रतीक आ गया.
धीरे धीरे लोग उस चमकीले पीले पत्थर को आभूषणों की तरह पहनकर गौरान्वित महसूस करने लगे.
दूसरा भी एक समूह था जो प्रकृति की सुंदरता, उसके अद्भूत तालमेल और मनुष्य कौन और उसका प्रयोजन क्या...इन सब रहस्यों का पता करने निकले, उन्होंने तो पहले इस टापू को देखा फिर एक छोटी सी नाव बनाकर समुद्र सैर के लिए निकल गए...कई मीलों की यात्रा के बाद उनको एक और सुन्दर और प्राकृतिक संसाधनों से भरा समृद्ध टापू मिला और भी टापू उन्होंने देखा जिसमें केवल पत्थर मिट्टी थे...खैर इस यात्रा में वे प्रकृति के रहस्यों से वाकिफ हुए और मानव का प्रयोजन क्यों..यह बात समझ आई.
जब वे वापस अपने टापू पर आये तो ये देखकर दंग रह गए कि यह सुन्दर टापू अब खदानों में तब्दील हो चूका था...पेड़- पौधे और जीव जंतु के लिए शायद ही कोई जगह बची थी...सभी तकलीफ़ में थे...जगह जगह खदानों में पानी भरने लगा था..लोग चमकीले पीले पत्थर के पीछे पागलों जैसे आपस में लड़ने लगे ...लोग भूख से तड़प रहे थे...दूसरे समूह को यह सब देखकर पीड़ा हुई और वे इन सबका कारण भी समझ रहे थे...
अब इन भले और समझदार मानव के समूहों ने अन्य लोगों को समझाने की बेहद कोशिश की.
कुछ लोग समझ के क्रम में आने लगे और वे सब साथ मिलकर इस टापू के लोगों में शिक्षा के माध्यम से जागरूकता फ़ैलाने का प्रयास किया साथ ही इस टापू को पहले जैसा बनाने का प्रयास भी कर रहे थे.
चूँकि लालची व भ्रमित मानवों का कार्य कुछ ज्यादा ही खतरनाक हो चला था अब भी वे इस चमकीले पीले पत्थर के मोह में ही थे...समझदार मानव के समूह ने देखा कि अब यहाँ और नहीं रहा जा सकता तो उन्होंने एक बड़ी सी जहाज तैयार की और सभी लोगों को साथ चलने को कहा किन्तु भ्रमितों ने ध्यान नहीं दिया.
समय की कमी को देखते हुए भले मनुष्यों के समूहों ने जितने मुसाफिर जाने को तैयार थे उन सबको साथ लेकर अपनी अगली यात्रा शुरू की और उस सुन्दर टापू पर पहुँच गए और उनके समझदारी पूर्वक कार्य व्यवहार से वह टापू और भी ज्यादा समृद्ध और लोग निरंतर सुखी समृद्ध हो गए..उन्हें किसी बात की पीड़ा नहीं थी क्योंकि ये हर घटना के नियम को जान चुके थे और उसके अनुसार ही उनका मानना, पहचानना और निर्वाह करना हो रहा था. 
और इधर पुराने वाले टापू का दृश्य कुछ इस प्रकार था...
टापू पानी में डूब चूका था..पैर रखने की भी जगह नहीं थी ...वे चमकीले पीले पत्थर को अपने सीने से चिपकाये मृत्यु की गोद में सामने लगे. 
आज भी यदि कोई उस टापू के पास से कोई गुजरता है तो दूर से उनको कुछ चमकीली चीज दिखती है ये उन्हीं मरे हुए लोगों की भटकती आत्मा (जीवन) है जो अब कई सदियों तक इस टापू पर दोबारा मानव शरीर तैयार होने तक का इंतज़ार करते रहेगी...भटकती रहेगी.
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(नोट- यह एक काल्पनिक कहानी है )      

       

Thursday, September 12, 2013

नए भूमि अधिग्रहण कानून का क्या होगा फायदा?

इस शीर्षक से मैंने यह लेख पढ़ा...

केंद्र सरकार का नया भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा से पास हो गया है और अब राज्य सभा से भी मुहर लगने के बाद यह ब्रिटिश कालीन करीब 120 वर्ष पुराने कानून की जगह ले लेगा।

नया कानून किसानों की जमीन के जबरन अधिग्रहण की इजाजत नहीं देता।

लेकिन यदि रक्षा या राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सरकार उनकी भूमि का अधिग्रहण करेगी तो उन्हें उचित मुआवजा पाने का हक होगा।

इस बिल में किस तरह की भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा इसका अधिकार राज्यों को दिया गया है। साथ ही राज्यों को अपना भूमि अधिग्रहण कानून बनाने की भी छूट होगी। मगर राज्यों के कानून में मुआवजा और पुनर्वास किसी भी सूरत में केंद्रीय कानून से कम नहीं होगा।

लोकसभा में बिल पर हुई बहस का जवाब देते हुए केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि दो वर्ष पूर्व लोकसभा में पेश किए गए भूमि अधिग्रहण बिल के मुकाबले मौजूदा भूमि अर्जन विधेयक में लगभग 158 छोटे बड़े संशोधन किए हैं। जिसमें 28 बड़े संशोधन हुए हैं।

इसमें 13 संशोधन स्थायी समिति और 13 संशोधन शरद पवार की अध्यक्षता वाली समिति और दो संशोधन विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की संस्तुति पर किए गए हैं।

कानून में न सिर्फ जमीन के उचित मुआवजे का प्रावधान किया गया है बल्कि भू स्वामियों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन की पूरी व्यवस्था की गई है।

ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहण पर किसानों को बाजार भाव से चार गुना दाम मिलेंगे जबकि शहरी इलाकों में जमीन अधिग्रहण पर भू स्वामी को बाजार भाव से दोगुने दाम मिल सकेंगे।

इसके बाद जमीन का जबरन अधिग्रहण भी नहीं किया जा सकेगा। प्राइवेट कंपनियां अगर जमीन अधिग्रहीत करती हैं तो उन्हें वहां के 80 फीसदी स्थानीय लोगों की रजामंदी जरूरी होगी।

फिलहाल देश में जमीन अधिग्रहण 1894 में बने कानून के तहत होता है।

नए कानून के लागू होने से बहुफसली सिंचित भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकेगा। जमीन के मालिकों और जमीन पर आश्रितों के लिए एक विस्तृत पुनर्वास पैकेज की व्यवस्था की गई है।

इस कानून में अधिग्रहण के कारण जीविका खोने वालों को 12 महीने के लिए प्रति परिवार तीन हज़ार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का भी प्रावधान है।

पचास हजार का पुनर्स्थापना भत्ता, प्रभावित परिवार को ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर में मकान, शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर ज़मीन पर बना बनाया मकान दिए जाने का प्रावधान भी इस कानून में किया गया है।

बिल में संशोधन सुझाया था कि जमीन डेवलपर्स को लीज पर देने का भी प्रावधान किया जाए, ताकि जमीन के मालिक किसान ही रहें और इससे उन्हें सालाना आय भी हो, यह संशोधन मंजूर कर लिया गया।

दूसरे संशोधन में कहा गया कि लोकसभा में सितंबर 2011 में बिल पेश किए जाने के बाद से अधिग्रहीत की गई भूमि के मूल मालिकों को 50 फीसदी मुआवजा देने का प्रावधान हो, सरकार 40 फीसदी पर राजी हो गई।

लिंक- http://www.amarujala.com/news/samachar/national/urgency-clause-controversial-land-acquisition-rehabilitation-resettlement-bill/


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कुछ बिंदुओं पर ध्यान गया..

"यह ब्रिटिश कालीन करीब 120 वर्ष पुराने कानून की जगह ले लेगा।" 
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जैसा कि हम सबको विदित है कि ब्रिटिशों की दृष्टि क्या थी?

"ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहण पर किसानों को बाजार भाव से चार गुना दाम मिलेंगे जबकि शहरी इलाकों में जमीन अधिग्रहण पर भू स्वामी को बाजार भाव से दोगुने दाम मिल सकेंगे।"
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शहरी इलाकों का तो ठीक है..चलेगा पर किसानों को भूमि अधिग्रहण के बाद ४ गुना जो दाम मिलेगा..इससे वे अगर दोबारा कृषि योग्य उतनी ही भूमि खरीद पाते हैं तो ठीक है पर यदि ऐसा नहीं करते तो वह इन पैसों के खत्म होने के बाद इनकी क्या स्थिति होगी?
क्या इनको पूंजीपतियों का गुलाम बनना पड़ेगा?

" प्राइवेट कंपनियां अगर जमीन अधिग्रहीत करती हैं तो उन्हें वहां के 80 फीसदी स्थानीय लोगों की रजामंदी जरूरी होगी।"
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अब इन प्राइवेट कंपनियों की दृष्टि का भी हम सभी को पता है. 

"इस कानून में अधिग्रहण के कारण जीविका खोने वालों को 12 महीने के लिए प्रति परिवार तीन हज़ार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता दिए जाने का भी प्रावधान है।"
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क्या यह सही है? श्रम ही तो मेरी पूँजी है प्रकृति के साथ कार्य करके ही तो मेरा आत्मविश्वास बढ़ता है तीन हज़ार रुपए प्रति माह जीवन निर्वाह भत्ता तो भीख हुई और भीख मुझे स्वीकार नहीं.

" पचास हजार का पुनर्स्थापना भत्ता, प्रभावित परिवार को ग्रामीण क्षेत्र में 150 वर्ग मीटर में मकान, शहरी क्षेत्रों में 50 वर्गमीटर ज़मीन पर बना बनाया मकान दिए जाने का प्रावधान भी इस कानून में किया गया है।"
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शहर वालों की बात छोड़ दी जाये...तो देखते हैं ग्रामीण क्षेत्रों के प्रभावितों को 150 वर्ग मीटर में मकान दिया जा रहा है...क्या यह पर्याप्त है? 
अगर आपने उनकी कृषि योग्य जमीन अधिग्रहण की है तो उतनी ही कृषि योग्य जमीन दीजिए. ताकि उसे अपनी जीविका के लिए किसी पूँजी पतियों के आगे हाथ ना फ़ैलाने पड़े.

इंग्लैंड में यह स्थिति है कि वहाँ बड़े बड़े लैंड लॉर्ड हैं वे ही कृषि का कार्य करते हैं या तो मल्टीनेशनल कम्पनी करती हैं...और मध्यम वर्गीय परिवार नौकरी पर ही निर्भर है...उनके लिए जमीन खरीदना एक सपने की तरह है और खेती तो वे सोच भी नहीं सकते...(सूचना अनुसार) भारत में भी हम क्या वही स्थिती बनाने जा रहे हैं? इन किसानों से अगर भूमि धीरे धीरे छीन ली जायेगी तो ये क्या करेंगें?  
तुम्हारी (पूंजीपतियों की) गुलामी?


Friday, August 30, 2013

अन्धकार या उजाला?

क्या चाहिए हमें? 
क्या सहज स्वीकार होता है?
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लघु कथा-

एक घना जंगल था...घना अँधेरा छाया हुआ था उसमें कुछ लोग अँधेरे को कोसते हुए अँधेरे से होने वाले कष्टों का विस्तृत वर्णन, विश्लेषण बारम्बार करते हुए चले जा रहे थे. इन सबमें ही उनका महत्वपूर्ण समय जाया हो रहा था. इससे उनको स्वयं तो मानसिक पीड़ा हो ही रही थी साथ में चलने वाले अन्य लोग भी पीड़ित थे. 
अँधेरे में किसी भी वस्तु से टकराते हुए, तमाम प्रकार की आशंकाओं से पीड़ित, भयभीत व असुरक्षित महसूस कर रहे थे.
तभी एक शख्स को कुछ याद आया उसने अपनी जेब से २ वस्तुएँ निकाली..पहला एक मोमबत्ती और दूसरी माचिस.
इसे जलाते ही उनके चारों तरफ उजाला हो गया. उस उजाले में जब सारी परिस्थितियां स्पष्ट हुई तो वे स्वयं पे हँसे बिना नहीं रह सके. 
और कुछ देर बाद आसमान में उजाला हुआ...सूर्य निकल आया अब अँधेरे का नामोनिशान नहीं था. अब उन्हें अपना लक्ष्य स्पष्ट नजर आ रहा था.
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कुछ लोग अँधेरे से बहुत डरते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि अँधेरा का कोई अस्तित्व ही नहीं है.
कैसे?
इसे इस प्रकार देख सकते हैं... इसके पहले २ प्रश्न..
=> क्या आप कोई ऐसा स्रोत बता सकते हैं जिससे अँधेरा पैदा किया जा सकता है?
नहीं ना? 
=> और क्या आप ऐसा कोई स्रोत बता सकते हैं जिससे उजाला किया जा सकता है?
आप कहेंगें.."हाँ" और आप मुझे बहुत सारे स्रोतों के नाम गिनवा देंगें.
(जैसे दिया, कैंडिल, बल्ब, सूर्य इत्यादि)
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निष्कर्ष:-
तो इससे यह निष्कर्ष निकालता है कि उस स्रोत के अभाव में अन्धकार (आपकी आँखों की रचना के कारण) छा जाता है जबकि अस्तित्व में अंधकार जैसी कोई चीज ही नहीं. इस अन्धकार में भी कई जीव आसानी से देख सकते हैं..
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ठीक इसी प्रकार "समझ" रुपी "उजाले" के अभाव में "दुःख/पीड़ा/आवेश/मान्यताएँ" रुपी "अन्धकार" छा जाता है
और "समझ" रूपी उजाला होते ही सुख, समाधान और समृद्धि प्राप्त हो जाती है.

Thursday, August 29, 2013

पहचान

प्रत्येक मानव अपनी पहचान चाहता हैं इसके बगैर वह तृप्ति महसूस नहीं करता.

पर मेरी पहचान कैसे बनेगी?
मेरी पहचान मेरे जीने के तरीके से बनेगी.

कैसा जीना?
मानवीयतापूर्णआचरण में जीना...

लिंग, आयु, रंग, आकार, वंश, समुदाय, जाति, नस्ल, धन, पद, सम्प्रदाय, वाद, भाषा, देश, विभिन्न प्रकार के सामाजिक संगठन, हुनर इसके अलावा फेसबुक पर मित्रों की संख्या, उनकी टिप्पणियों और ब्लॉग पर होने वाली टिप्पणियों से हम अपनी पहचान समझते हैं तो यह एक बहुत बड़ा भ्रम है...

कुछ उदहारण पर गौर करते हैं.
जैसे :-

=> रंग-
यदि ऐसा लगता है कि गोरा या सांवला रंग से मेरी पहचान है तो जानिए मानव शरीर के रंग में विभिन्न्ताओं का कारण क्या है? इसके पीछे एक कण है जिसे मेलेनिन शब्द दिया गया है. यह मेलेनिन पिगमेंट सूर्य की रोशनी से निकलने वाले खतरनाक किरणों से हमारी रक्षा करती हैं जिसमें यह कण ज्यादा होता है उनका रंग सांवला व जिनमें कम होता है उनका रंग गोरा होता है.
अब यदि हमने शरीर की सुरक्षा प्रणाली को "सम्मान/ पहचान" से जोड़ दिया तो क्या यह सही है? 
वास्तव में यह सांवला रंग का मानव शरीर के कोशिकाओं की सुरक्षा प्रणाली ज्यादा बेहतर होती है बनिस्पत गोरे शरीर के.

=> वस्त्र-
मैं तो खादी/ सूती वस्त्र ही पहनती हूँ पर किसलिए?
शरीर की सुरक्षा हेतु या पहचान के लिए?

=>पद-
अब देखते हैं पद/ ओहदा (पोस्ट)
उदहारण लेते हैं "शिक्षक" पद का..
क्या शिक्षक पद में होने मात्र से ही मेरी पहचान है?
यदि मुझमें शिक्षक में जो पात्रता होनी चाहिए वह नहीं है तो मैंने इस पद के साथ न्याय नहीं किया. मैंने शिक्षक शब्द के अर्थ को समझा ही नहीं.
शिक्षक कक्षा में क्या पढ़ाता है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण उसका जीना है. यही जीना ही उसके अंदर आता है. वह बच्चा आपके हर क्रिया पर नज़र रखता है उससे ही वह सीखता है. और जिंदगी जीने के काबिल बनता है.

=> गुरु/ संत
यह भी एक पद ही है आप इन्हें अध्यापक/अध्यापिका कह सकते हैं.
क्या एक गुरु की पहचान उनके भक्तों की संख्या, २४ घंटे अनुयाइयों से घिरे होने, उनके एशोआराम से है?
या फिर इससे पहचान बनेगी कि उस गुरु/संत ने अपने जैसे कितने मानव को तैयार होने के लिए प्रेरित कर पाए. तो क्वालिटी कि क्वांटिटी?

=> राज्य (जिसे आपकी भाषा में देश कहा जाता है)
( राष्ट्र (धरती) एक, राज्य अनेक)
तो मैं किस राज्य (देश) में रहती हूँ इससे मेरी पहचान ठीक लगती है कि ऐसा सुनना ठीक लगता है?
" लोग जो मानवीयता पूर्ण आचरण में जीने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं फलाने राज्य के हैं.
उनकी समझने की गति बेहद अच्छी है.
वे हमको समझने और जीने में सहयोग करते हैं वे सम्पूर्ण मूल्यों (३० मूल्य) में बेहतर जी रहे हैं अत: हम उस फलाने राज्य/ खंड के सहयोग के प्रति कृतज्ञ हैं."

बाकी तो आप खुद ही समीक्षा कर सकते हैं 
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सर्वप्रथम मेरे आचरण/जीना पर ही सबका ध्यान रहेगा इसके पश्चात ही सामने वाला व्यक्ति इस बात की जाँच करता है कि इसने ऐसा सुन्दर आचरण कहाँ से पाया?
मुझे राजन महाराज जी की बात याद आती है उन्होंने एक बार कक्षा में ऐसा जिक्र किया था. जब वे पहली बार आदरणीय श्री ए. नागराज जी से मिले थे तो उनके आचरण से ही वे प्रभावित हुए थे. समाधि, संयम से प्राप्त ज्ञान की बात उन्हें पकड़ में आती नहीं थी.
आदरणीय श्री ए. नागराज जी की सरलता, व्यवहार से ही उन पर पूर्ण विश्वास बना तब जाकर उन्होंने जीवन विद्या पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित किया. अब वे कितना जी पा रहे हैं ये उनके मूल्यांकन का विषय है.
पर विद्या की सूचना को सरल से सरलतम बनाने व उसे हम तक पहुँचाने में उन्होंने व अन्य भाइयों -बहनों ने जितना योगदान/सहयोग किया है वह सराहनीय है शायद ही हम उनका ये ऋण चूका पायें...
 

Sunday, July 7, 2013

कैसा विकास चाहिए?

केदारनाथ में दो सौ राहत कर्मी खराब मौसम के कारण फंसे....

देखिये यदि विकास का पैमाना भौतिक सुख सुविधाएँ हैं जिससे आप अपने शरीर और परिवारजनों के अलावा अन्य की शारीरिक (भौतिक) रक्षा कर पाए तो यहाँ भी हम फिसड्डी ही साबित हुए. (उत्तराखंड की स्थिती को देखते हुए)

सेटेलाईट को अंतरिक्ष में स्थापित कर स्वयं को विकसित समझने वाले यह देखें कि हम एक भी प्राकृतिक आपदा (अभी तो फिलहाल सारी आपदाओं का जड़ मानव स्वयं रहा) का मजबूती से सामना नहीं कर पाते अभी भी हम इन आपदाओं (अभी तो सचमुच की आपदा आई ही नहीं है जब आएगी तो अपनी स्थिति का हम आकलन ही नहीं कर सकते) के सामने एकदम बौने नजर आते हैं....

लाखों धान, गेहूँ/अनाज खुले में रखे रहने के कारण बारिश में भींग कर वर्तमान की आधुनिकतम सदी २०१३ में भी सड़ जाता है और हम G.M.O. की सोचते हैं...
तो हम किस मुँह से स्वयं को विकसित मानते हैं?

इसका अर्थ यह है कि हमने विकास का अर्थ नहीं पहचाना! विकास शब्द तो पकड़ लिए पर अर्थ तक नहीं पहुँच पाए.
यदि हम विकसित होते तो सर्वप्रथम हम खुशियाली और बगैर शिकायत के जीते. हम पूरकता और सहयोग के अर्थों को समझते. हम वास्तविकता की समझ के साथ जीते फलस्वरूप चारों ओर खुशियाली ही खुशियाली होती व शिकायत मुक्त होते...
तब यह धरती स्वर्ग कहलाती....

Thursday, June 27, 2013

Nation is in deep crisis!!!

It is quite clear that India's trade deficit is largely due to the huge oil, coal and natural gas import bill. Since the government does not seem to be thinking straight at all, we the people need to make some choices in form of cutting down our fuel consumption. 

Presently, the electricity, petrol and LPG are the main fuels being consumed in urban households, this consumption needs to become judicious. Along with that most of us who are on facebook can afford (my estimation) solar powered lighting systems, water heating system and solar cooking systems. This technology is available easily and needs to be adopted immediately.

Voting, slogan shouting, candle marches, wearing black tags, facebook posts (like this one) is not the only power in the hands of the citizens, we can also contribute through judicious proactive measures like right energy utilisation.

Apologies for sounding preachy, but the nation is in deep crisis.

Source-Ashok Kumar Gopala

Related link-
http://in.reuters.com/article/2013/06/27/india-gas-prices-ongc-oil-india-idINDEE95Q0CY20130627
http://www.hindustantimes.com/business-news/WorldEconomy/India-s-current-deficit-reaches-historic-high-RBI-cautions-of-risks/Article1-1083560.aspx
http://www.thehindu.com/opinion/columns/Economy_Watch/the-scramble-for-foreign-debt/article4746524.ece

UPDATE ON RESCUE AND RELIEF OPERATIONS IN UTTRAKHAND

आप भारतीय सेना द्वारा शुरू किये गए इस वेबसाईट के माध्यम से उत्तराखंड में हुए प्राकृतिक आपदा में बचे हुए अपने प्रियजनों से जुड़ी जानकारियाँ प्राप्त कर सकते हैं... 

http://suryahopes.in/

इस कठिन समय में भारत की जनता भावनात्मक रूप से आप सभी के साथ हैं...कृपया स्वयं को अकेला ना समझे. हौसला रखें... 

रोशनी 

Friday, June 7, 2013

"जीने दो और जियो"

सबेरे का अखबार खोला, नवभारत राजधानी (रायपुर) में यह खबर पढ़ते ही हंसी आ गई..
" तहसीलदार, निगम अफसर व पुलिस पर हमला" 
(गनीमत है इनके हाथ सिर्फ लाठियाँ और डंडे थे, बंदूकें नहीं..नहीं तो ये भी नक्सली कहलाये जाते) 
खैर आगे की एक और लाइन, 

...तनाव के बीच अवैध कब्जे हटाये, ६ महिलाएं हुई गिरफ्तार...

अब ये अवैध कब्जाधारी झोपडियों में रहने वाले हैं जिनके घर की महिलाएं घरों में बर्तन मांजकर और झाड़ू पोछा कर और पुरुष रिक्शे चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं...

इनका मूल कारण ढूंढने जाये तो वही...किसी को अपनी आवश्यकता का पता नहीं बस शोषण किये जा रहे हैं जिसे वह अपनी मजबूरी बताता है इसका परिणाम समाज में एक वर्ग बहुत अमीर और दूसरा वर्ग बेहद गरीब, दुःख, असंतोष, विद्रोह इत्यादि...

और एक बात बड़ी विचित्र है...ये वैध और अवैध का चक्कर?

* अगर तुम गोली और डंडे मारो तो वैध, जनता मारे तो अवैध?
* अगर तुम उपजाऊ खेतों का अधिग्रहण करो तो वैध यदि गरीब जनता थोड़ा सा जमीन ले ले तो अवैध?
* अगर तुम शराब की दुकाने खोलो तो वैध बाकी खोले तो अवैध? हालाँकि ये दोनों ही अवैध है.
* तुम अगर खदानें खोदो, पेड़ काटो, खनिज संपदा को विदेशों में भेजो तो सब वैध और जनता करें तो अवैध?
* तुम गायों की हत्या के लिए स्लॉटर हॉउस बनाओ तो वैध? बकायदा इसके लिए लोन भी मिल जाता है वही अगर कोई गौशाला खोलना चाहे तो उसे कोई लोन नहीं?

लिस्ट बनाने जाओ तो शायद कभी खत्म ना होने वाली बनेगी. कहने का तात्पर्य यदि कोई कार्य अवैध है तो वह सभी के लिए अवैध होगा. और यदि वह वैध है तो सभी के लिए होगा...

यह धरती में सारी रचनाएँ व्यवस्था में है, हर एक रचना एक दूसरे से सहयोग करती नज़र आती है...इससे कुछ सीखें और पूरकता अर्थात व्यवस्था में भागीदारी निभाएं, पोषक बनें शोषक नहीं...


"जीने दो और जियो"

Thursday, April 4, 2013

मौत की सजा का एलान

आज इन तीन हत्यारों को मौत की सजा का एलान किया जाता है...
फाँसी का फंदा (सभी प्रकार के), बंदूकें/ राइफल्स और कलम (जजों   और  संपादकों की ) l




फाँसी के फंदे पर यह गंभीर आरोप है कि ये जब से अस्तित्व  में (इसका डिज़ाइन)आया तब से ही यह नाना प्रकार की हत्यायें की हैं और शामिल भी रहा ...कभी इसने बेगुनाह जानवरों को, शिकारियों को पकड़ने में मदद कर अप्रत्यक्ष रूप से अपराध किया तो कभी वीर क्रांतिकारियों की हत्या की और आज तक यह सिलसिला बदस्तूर जारी  है इसका अपराध अक्षम्य हैं इसका अस्तित्व में रहना ही मानव जाति के लिए खतरनाक है l


बंदूकें/ राइफल्स/पिस्टल पर यह संगीन जुर्म दर्ज किया गया है कि इसने एक ही झटके में कई  बेगुनाह प्राणी या मनुष्य के शरीर को छलनी कर उनकी निर्दयता से हत्या की हैl अस्तित्व में इसकी मौजूदगी प्राणी व मानव जगत के लिए ठीक नहीं हैl



तीसरा सबसे खतरनाक अपराधी है "कलम" 
इस पर सृष्टि को बर्बाद करने की कोशिश का आरोप है इसने आज तक जो भी लिखा उसके कारण ही लोगों में लोभ आया फलस्वरूप धरती बीमार हो गई. हालाँकि इसने कुछ अच्छा भी लिखा पर इसकी तमाम अपराधों के सामने यह बौनी साबित होती है अगर यह अस्तित्व में रहा तो यह शंका है कि यह धरती ही नष्ट ना हो जाये!




क्यों ठीक है ना महोदय जी ? 

किस सोच में पड़ गए?

आप सोच रहे होंगें कि यह तो पागलपन है ...भला इन अपराधों में इनका क्या दोष है असली गुनहगार तो इनका प्रयोगकर्ता है अर्थात मानव, यह तो केवल माध्यम है!

चलिए ठीक है ...मानव ही असली कुसूरवार है तो दोषी मानव को हम फाँसी दे देते हैं या फिर गोली से उनके शरीर को छलनी कर देते हैं  अब देखो यह मृत हो गया..
अब बुराइयाँ खत्म क्योंकि हमने तो स्वयं को शरीर माना हुआ है तो इस शरीर को मौत की सजा देकर इसके शरीर को मिट्टी में मिला देते हैं या जला देते हैं शरीर आखिर मिट्टी और गैस का तो बना हुआ है ना ! मिट्टी में मिल जायेगा...
अब शरीर भी खत्म,बुराई भी खत्म ...

अब ठीक है ना? ओहो...अब किस सोच में डूब गए?   

ठीक तो है पर ...मैं एक उलझन में पड़ गया क्या वाकई में मैं शरीर हूँ? अगर मैं कुछ और हूँ तो?

अच्छा ठीक है...यदि आप स्वयं को शरीर नहीं मानते एक चैतन्य इकाई मानते हैं तब तो आप भी वही मूर्खता कर रहे हैं...
जिस प्रकार फाँसी का फंदा, बंदूकें और कलम का कोई दोष नहीं उसी प्रकार मानव शरीर का भी कोई दोष नहीं ये तो सिर्फ माध्यम  हैं l

तो फिर गुनेहगार कौन है?

ये दोषी (जिनको आपने मान रखा है ) चैतन्य इकाइयाँ हैं जो कभी नहीं मरती, इसका कभी नाश नहीं होता, ये टुकड़ों में भी नहीं बंटती...

अर्थात्?      

अर्थात् हम शरीर को मार कर कभी भी बुराइयों को खत्म नहीं कर सकतेl ये बुरी प्रवृत्ति वाली चैतन्य इकाइयाँ जब मानव शरीर दोबारा धारण करती है और उसे फिर से बुराइयों से भरा वातावरण मिलता है तो फिर से वह वही अपराध दोहराएगी अपने साधन अर्थात शरीर का गलत उपयोग करेगीl

ओह! तब क्या किया जाये?

चूँकि मानव में अच्छी प्रवृत्ति व बुरी प्रवृत्ति रहती है अच्छी प्रवृत्ति तो ठीक है पर यह ज्यादा अच्छा होगा कि इन प्रवृत्तियों के स्थान पर संस्कार स्थापित हो जाये. ऐसा जब तक नहीं होगा तब तक स्थाई हल की संभावना नहींl 

मैं समझा नहीं..

देखो महोदय जी, अपने चारों ओर क्या दिख रहा है?

नीला आकाश, पत्थर, पहाड़, नदियाँ ,पेड़ - पौधे, जीव जंतु और मानव...

तो इस आकाश में क्या है? 

हवा...

हवा में क्या है ?

दूर फैले हुए परमाणु जिन्हें हम गैस कहते हैं वायु भी तो गैसों का मिश्रण है l

अच्छा अब पत्थर, पहाड़,  नदियों को देखो..क्या नज़र आया? अच्छी तरह से देखने का प्रयास करो l

ये भी परमाणुओं से बनी हुई है..

और?

आप ही बता दीजिए.. 

देखो क्या ये साँस ले पा रही है?

नहीं!

हाँ तो ये अवस्था कहलाई , पदार्थ अवस्था...ठीक है?

अब देखो इन पेड़- पौधों को, और साथ ही अपने शरीर की कोशिकाओं को भी देखो..क्या ये साँस ले रही हैं?

हाँ.. 

और इसके अलावा क्या ये तुम्हारी बात मानती हैं?

नहीं!

तो ये कहलाई प्राण अवस्था..

अब जीव जानवर को देखो...

ये देखो इस गाय को यह तुम्हारे इशारे को समझ पा रही है तो ये हुआ जीव अवस्था... 

और अंत में बचते हो तुम :)

हा हा हा 

हम अर्थात मानव अवस्था....इसके अलावा तुम्हें और कोई अवस्था नज़र आएगी तो सूचित करना... 

अच्छा तो ये हुई चार अवस्था- पदार्थ अवस्था, प्राण अवस्था, जीव अवस्था और मानव अवस्था...
अब आगे बताइए मानव  में संस्कार स्थापित कैसे किया जाये?

देखो जैसा तुमने अभी कहा अस्तित्व में ४ अवस्थाएं हैं 

पदार्थ अवस्था, परिणाम (अंशों की कुल मात्रा) के अनुसार चलते हैं  अत: यह परिणामानुषंगी हैl

प्राण अवस्था (पेड़-पौधे व सभी प्रकार की साँस लेने वाली सभी कोशिकाएँ), ये बीज के अनुसार चलते हैं अत: यह हुई बीजानुषंगी.

जीव अवस्था, ये वंश के अनुसार चलते हैं अत: ये हुए वंशानुषंगी...

और मानव अवस्था संस्कारों अर्थात समझ के अनुसार चलते हैं अत: मानव हुआ संस्कारानुषंगी...

बात पकड़ में आई ? :)

थोड़ा थोड़ा...अच्छा ये बताओ यदि मानव संस्कारानुषंगी है तो हम उसमें अच्छे संस्कार कैसे डाल सकते हैं ?

संस्कार (समझ) हमेशा अच्छी ही होती है आप प्रवृत्ति को अच्छी या बुरी कह सकते हैंl
संस्कार या समझ मानव में शिक्षा से ही आ सकती है अत: हमें शिक्षा पर ध्यान देने की जरुरत है इसका मतलब यह नहीं कि हमें शिक्षा विद्यालयों में ही मिलती है...
शिक्षा सर्वप्रथम माँ से फिर परिवार के अन्य सदस्यों से, पड़ोसियों से, सम्बन्धियों से फिर समाज से, देश से और अन्तरराष्ट्र से ...

ओह! इसका मतलब तो शुरुआत तो स्वयं से करनी होगी फिर परिवार, समाज, देश व अन्तर्राष्ट्र तक जाना होगा तभी तो हम हमारी आने वाली पीढ़ी को एक बेहतर वातावरण दे पायेंगें इस सुन्दर वातावरण में उसका सही विकास (चेतना का विकास) होगा l 

बहुत अच्छे :)   

Tuesday, April 2, 2013

मैं कौन हूँ?

एक सवाल मैं कौन हूँ ?
चार ऑप्शन... 

१. शरीर 
२. मस्तिष्क 
३. चैतन्य इकाई 
४. या फिर और कुछ

यह प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके आधार पर ही हमारा जीना होता है
मुझे अप्रत्यक्ष रूप से कुछ उत्तर मिले थे जिनमें से एक ने मस्तिष्क की ओर इशारा किया था और एक ने तीसरे नम्बर पर...
चलिए प्रत्येक का विश्लेषण करते हैं

पहले देखते हैं यदि "मैं शरीर हूँ "
===================

* तो मैं कई कोशिकाओं का एक समूह हूँ और हर दिन लाखों कोशिकाएं मरती है और बनती है अर्थात मैं हर दिन मृत्यु को प्राप्त हो रहा हूँ और जन्म ले रहा हूँ और आखिर में एक दिन ये सब कोशिकाएँ जर्जर हो जाएँगी और मैं सम्पूर्ण मृत्यु को प्राप्त होऊंगा.

* तो कोशिकाओं से बने एक कोशिका को देखते हैं इसमें तो एक बड़ा सा कारखाना नज़र आ रहा है और सारी इकाइयाँ एक दूसरे का सहयोग करती नज़र आ रही है बीच में महत्वपूर्ण घटक एक केन्द्रक दिख रहा है अब इसके अंदर भी देखते हैं तो गुणसूत्र नज़र आ रहे हैं गुणसूत्र के अंदर जाते हैं तो पाला पड़ता है एक बहुत ही महत्वपूर्ण परमाणु से उसका नाम है कार्बन... कार्बन को और बड़ा करके देखते हैं तो नज़र आते हैं कई अंश...जिसमें से कुछ केंद्र में ही एक दूसरे से एक अच्छी दूरी बनाये रखते हुए गति में हैं और कुछ अंश इन बीच वाले अंशों के चारों ओर घूम रहे हैं अलग परिवेश में...

* चलिए अब इन अंशों के भी अंदर जाते हैं तो बहुत सारे क्वार्कस् ( Quarks) दिखते हैं और कहा जाता है कि यह शायद कंपन करने वाली तंतुओं के टुकड़ों से बना है आप यह वीडियो भी देख सकते हैं (४ मिनिट १२ सेकेंड से देखना शुरू करिये)

http://www.youtube.com/watch?v=bhofN1xX6u0

** निष्कर्ष- यदि मैं शरीर हूँ तो मेरी उम्र इन कोशिकाओं के जीते तक ही है तो मुझे क्या करना चाहिए?
शरीर के लिए तमाम सुविधाएँ इकठ्ठा करनी चाहिए और इनसे सुखी होने का प्रयास करना चाहिए. तरह -तरह के व्यंजन खाना चाहिए और मौज मस्ती करनी चाहिए रात दिन शरीर से सुखी होने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि जिंदगी है तो चार दिनों की ....बच्चों के लिए बैंक बैलेंस छोड़ के चले जाते हैं ताकि उनकी जिंदगी भी हमारी तरह सुविधाओं के बीच गुजरे...और बस हमारी कहानी खत्म और इतिहास में दर्ज... अगर उस लायक रहे तो! और फिर बरसों याद किये जायंगें :)

अब देखते हैं यदि "मैं मस्तिष्क हूँ"
=====================

* तो बस मैं अर्थात मस्तिष्क ही सोचता हूँ निर्णय लेता हूँ और मेरे (मस्तिष्क) नष्ट होते ही सब नष्ट अर्थात मृत्यु की प्राप्ति.

* मस्तिष्क भी कई तरह की कोशिकाओं से बना हुआ जो असंख्य परमाणुओं से बना हुआ है तो मैं एक असंख्य परमाणु का गुच्छा हूँ आगे वही कहानी परमाणु, नाभिक, गुणसूत्र, कार्बन परमाणु और फिर कई अंश ...

** निष्कर्ष- यदि मैं मष्तिष्क हूँ तो मुझे अपने मस्तिष्क का खास ध्यान रखना चाहिए ताकि मैं और अधिक दिन तक जी सकूँ और शरीर से सुखी होने का प्रयास करना चाहिए....

अब देखते हैं यदि "मैं एक चैतन्य इकाई हूँ "
============================

* तो मैं कभी मर नहीं सकता मैं अमर हूँ , मैं जड़ इकाइयों से कुछ अलग तरह का हूँ मैं यह शरीर नहीं...मस्तिष्क नहीं...

* अगर मैं अमर हूँ यदि मेरी मर्जी है तो ? बार बार जन्म लेकर इस धरती में आता हूँ / रहूँगा

**निष्कर्ष - यदि मैं एक अमर इकाई अर्थात चैतन्य इकाई हूँ तो ना तो मैं स्त्री हूँ ना ही पुरुष क्योकि यह शरीर तो सिर्फ एक माध्यम है अब मुझ पर तो बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ पड़ी है चूँकि मुझे धरती पर फिर से आना है तो मैंने तो कुछ भी बचाया नहीं...सारे पेड़ काट डाले, जमीन खोद डाली अब मैं खाऊंगा क्या? साँस कैसे लूँगा? इस बेरंगी दुनिया में कैसे जी सकूंगा? तो मुझे तो अभी से ही प्रयास करना होगा.

इस धरती को फिर से हरा भरा बनना होगा मैं हमेशा (निरन्तर) रहने वाली चीज हूँ और हमेशा (निरंतर) खुश रहूँ ऐसा प्रयास करना होगा ताकि मेरा भविष्य... मेरी अगली शरीर यात्रा सुखद हो.... साथ ही मेरे बच्चे और अन्य चैतन्य इकाई भी निरंतर सुख को प्राप्त कर सके इसका प्रयास करना होगा...

इसके अलावा चौथे विकल्प में आपको कुछ सूझता है तो शेअर कीजिये... स्वागत है :)

Sunday, March 31, 2013

शब्द से अर्थ

एक बार एक दिव्य मानव ने धरती की सैर की योजना बनाई...
धरती का हाल उनसे छुपा ना था..

सबसे पहले वे एक विशेष समूह के पास गए जो स्वयं को हिंदू कह रहे थे और दूसरे समूह की निंदा कर रहे थे जैसे ही उन्होंने उस मानव को देखा तो उन्होंने उनसे पूछा, आप कौन हैं?उन्होंने उत्तर दिया - "मैं भगवान हूँ...तुम आपस में क्यों लड़ रहे हो?"
देखो ना भगवान जी, ये दूसरे धर्म और मजहब के लोग आपको बदनाम कर रहे हैं इससे हिंदुत्व खतरे में आ जायेगा इसलिए हम अपने धर्म और आपकी इज्जत और रक्षा के लिए लड़ रहे हैं.."अच्छा !"...भगवान ने उत्तर दिया.

अब दिव्य मानव ने दूसरे समूह की ओर रुख किया वहाँ भी वही हाल था..उन लोगों ने पूछा "कौन हो तुम ब्रदर ?
"मैं हूँ " God... और तुम सब आपस में क्यों लड़ रहे हो?"
देखिये ना God दूसरे धर्म और मजहब के कारण आपका अस्तित्व और क्रिश्चन धर्म खतरे में दिख रहा है हम आपकी रक्षा के लिए लड़ रहे हैं...
"अच्छा ?" God ने जवाब दिया और मुस्कुराते हुए चले गए...

तत्पश्चात उन्होंने एक तीसरे समूह की ओर प्रस्थान किया...वहाँ भी वही हाल था...उन्होंने फिर वही सवाल दोहराया.."आप कौन हैं जनाब?"
"मैं हूँ अल्लाह और आप सब क्यों लड़ रहे हो?"
देखिये ना अल्लाह जी...दूसरे मजहब और धर्म के लोगों ने इस्लाम को बदनाम करने की घिनौनी साजिश कर रहे हैं उन जालिमों से आपकी रक्षा के लिए हम लड़ रहे हैं. 
"अच्छा?" अल्लाह जी  मुस्कुराकर जवाब दिये l

अब उन्होंने इन तीनों समूह को एक साथ बुलाया और पूछा,

पानी का अर्थ क्या होता है ?

किसी ने कहा जल, किसी ने कहा वाटर तो किसी ने कहा नीर और एक ने कहा ماء/ दबाक ...
अब उस दिव्य मानव ने जवाब दिया..

"अरे भ्रमित इंसानों पानी का मतलब होता है जो प्यास बुझाती है... जिस दिन तुम शब्दों के अर्थ तक पहुँचना सीख जाओगे उस दिन तुम मेरा अर्थ भी समझ जाओगे... "

Saturday, March 23, 2013

मानव का आचरण निश्चित क्यों नहीं?

मानव का आचरण निश्चित क्यों नहीं?

जैसा कि हम पहले भी आचरण  पर एक कोण से नज़र डाल चुके अब इसे दूसरे कोण से भी देखने का प्रयास करते हैं....

जरा अपनी नज़रें अपने चारो ओर दौड़ाईये और चारों अवस्था पर एक बार फिर से देखें.

सबसे पहले पदार्थ अवस्था...
आचरण निश्चित...क्यों?
क्योंकि इनमें जो क्रिया का प्रकार है वह पहचानना और निर्वाह करना l इन दो से ही इनका आचरण निश्चित हो जाता है और वे व्यवस्था में भागीदारी करते हैंl

दूसरी अवस्था प्राण अवस्था (समस्त प्रकार की कोशिकाएँ, पेड़-पौधे)
आचरण निश्चित ...क्यों?
क्योंकि इनमें भी जो क्रिया का प्रकार है वह है पहचानना और निर्वाह करना l इनमें भी इन दो क्रिया के प्रकार से आचरण निश्चित हो जाता है..और व्यवस्था में सक्रिय भागीदारी निभाते हैं...

तीसरी अवस्था, जीव अवस्था...
आचरण निश्चित ...क्यों?
क्योंकि इनमें जो क्रिया का प्रकार है वह है - मानना, पहचानना और निर्वाह करना..
इतने में ही इनका आचरण निश्चित हो जाता है और ये व्यवस्था में भागीदारी करते हैं....

अब आती है बारी हमारी..अर्थात मानव जाति की,
आचरण अनिश्चित .....क्यों?
क्यों हमारा आचरण निश्चित नहीं है?

क्योंकि हम मानना, पहचानना और निर्वाह कर रहे हैं मतलब हम जीवों जैसे जीने का प्रयास कर रहे हैं बस फर्क इतना है कि गाय सीधे घास खाती है और हम उसे पकाकर प्लेट में डाल कर खा रहे हैंl

खैर सवाल यह है कि हमारा आचरण निश्चित होगा कैसे?
तो
जवाब यह है कि जब हम जानने के अनुसार मानेगें, मानने के अनुसार पह्चानेंगें और पहचानने के अनुसार निर्वाह करेंगें.....
अर्थात जब हममें यह क्रिया होने लगेगी ...जानना, मानना, पहचानना, और निर्वाह करना...
इसके उपरांत ही हम सारे मानव जाति का आचरण निश्चित होगा चाहे वह किसी भी धरती के हों और व्यवस्था में सकारत्मक भूमिका निभायेंगेंl
(सूचनानुसार)
..........................................................................................

एक गणित की कक्षा में एक सवाल हल करने को दिया गया.
गलत हल (मानना) करने पर सभी के उत्तर गलत आये
पर जैसे ही उन्हें सवाल हल करने का सूत्र मिल गया
तो सारे जवाब सही आये और उत्तर सबका एक ही आया...

कहने का तात्पर्य जैसे ही मानव जाति को वह समझ रूपी सूत्र मिल जाये तो उसका आचरण निश्चित हो जायेगा l

Wednesday, March 6, 2013

You Will Not Believe Your Eyes !!!


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You Will Not Believe Your Eyes !!!


Environment  (tags: pollutionenvironmentecosystemsoceans ) 
 Roshani - 10 days ago - youtube.com 
This video is about an island in the ocean at 2000 km from any other coast line. Nobody lives, only birds and yet ... You will not believe your eyes!

Comments

Roshani S. (65)
Saturday February 23, 2013, 6:17 am
This video is about an island in the ocean at 2000 km from any other coast line.
Nobody lives, only birds and yet ...............
You will not believe your eyes!!!!!!!

This film should be seen by the entire world, please don't throw anything into the sea. Unbelievable, just look at the consequences!!!!!
 

Samir Nassir(22)
Saturday February 23, 2013, 6:21 am
Noted , Thanks .
 

Teresa Wlosowicz(514)
Saturday February 23, 2013, 6:42 am
thank you
 

Dan and Tina Partlow (48)
Saturday February 23, 2013, 6:47 am
So very sad! We need to stop using our oceans as trash dumps!
 

Christeen Anderson(110)
Saturday February 23, 2013, 7:05 am
This video sends a good message. Thank you.
 

Mathew Wallace Doing my PhD (1113)
Saturday February 23, 2013, 7:17 am
Thanks for raising awareness Roshani!
 

Gran Pat (325)
Saturday February 23, 2013, 7:19 am
Very sad...for our environment, and for all the animals who live in it. Passing this on, and saving as well. TY, Roshani, for this video.
 

Roshani S. (65)
Saturday February 23, 2013, 7:26 am
Thank you so much Sameer, Teresa, Dan and Tina, Christeen, Mathew and Gran Pat...
 

Edwin M. (357)
Saturday February 23, 2013, 8:39 am
The biggest danger to our environment is from a species which is supposedly the most intelligent on the planet. Thanks Roshani.
 

Estelle S. (7)
Saturday February 23, 2013, 8:48 am
How Sad- will "Humans" ever learn!!!!!
 

Roshani S. (65)
Saturday February 23, 2013, 9:04 am
Thanks Edwin, Estelle.
Human beings having advance and fully developed brain to keep safe our mother earth, it's creature and for living harmoniously with human beings & the rest nature.
Due to lack of knowledge (Saty/ truth) human misusing their imagination.
"Power of imagination is a tool available to a human by its intrinsic design, we can either use this tool for entertainment or for "considering" proposals/information to understand ourselves, our world and our purpose. ..."
 

Henriette Matthijssen(132)
Saturday February 23, 2013, 10:25 am
My friend Rose from One Vibration had posted it to our group as well! This was my comment; Our ways & actions towards other lives causes their death! Humanity must really clean up our harmful ways of how we dispose of trash as it kills beautiful life far from where we live. Goes to show we are all connected! Thanks Roshani for this video! It is short, but tells a sad story!
 

Parsifal Rain Satori (103)
Saturday February 23, 2013, 10:29 am

Thank you sister Roshani, yep the video should make everyone think....

Plastic Is Forever
 

Bee S. (135)
Saturday February 23, 2013, 11:03 am
Thank you, Roshani & Henriette for this Special one :-))
 

Mary T. (187)
Saturday February 23, 2013, 1:48 pm
Thank you, Roshani & Henriette, This is so sad to think that only a few humans care about our planet we must stop trashing it before we are all doomed.
 

Madhu Pillai(11)
Saturday February 23, 2013, 1:51 pm
Too traumatic to watch even the first few seconds of the video, horrible the destruction of our planet, flora and fauna by our thoughtlessness. Thank you Roshani for jolting our awareness.
 

Rose NoFWDSPLZ(215)
Saturday February 23, 2013, 2:24 pm
Shocking
 

Mariette G.(122)
Saturday February 23, 2013, 3:28 pm
My thoughts exactly Madhu! Thanks Roshani and Henriette!
 

desanka s.(252)
Saturday February 23, 2013, 5:23 pm
It's very sad to see decomposing birds with plastic trash in their stomachs. Everyone, no matter how close or far from the ocean, can contribute to the solution: reduce, reuse and recycle!

Thank you Roshani and Henriette for the forward.
 

Agnes N. (566)
Saturday February 23, 2013, 7:09 pm
Thanks Henriette, Roshani ..great VDO and good message..
 

Eternal Gardener (612)
Saturday February 23, 2013, 7:30 pm
Devastating, the effect humanity has on life!
 

Roshani S. (65)
Saturday February 23, 2013, 10:42 pm
Thanks brother Parsifal for the video. This one... made me sad again :(
Previous (when I was child) in India's villages villagers used leaf plate in any function. But now they are using plastic coated leaf plates. Previous every material we found in paper bag or news paper roll but today every thing we get in plastic! I try to take materials from market in homemade cotton bag but it is not sufficient because so many things like in your video almost 90% item is covered with plastic as medicine, computer material etc...
We get horrible result day by day...so sad...
I see cow in our area who dies because of this plastic. People throw food in plastic bag, poor cow and others animal couldn't break this bag and they eat this food with plastic.
When ever I saw all this things, tears in my eyes....
 

Maureen C. (3)
Saturday February 23, 2013, 10:44 pm
OMG! Seeing these magnificent birds dying slowly and probably painfully from our trash is heart-wrenching, and shameful.

You're right, Roshani --everyone should see this, and resolve to clean up their act.
 

Roshani S. (65)
Saturday February 23, 2013, 10:49 pm
Thank you so much my dear care2 friends (Henriette, Parsifal, Bee S, Mary, Madhu, Rose, Mariette, desanka, Agnes, Eternal Gardener and other members )for noting and giving your valuable time for watching this video.
I am grateful for you all.
 

Kim O. (375)
Saturday February 23, 2013, 11:13 pm
OMG this is so sad to watch. Great information Roshani. Horrible the impact of humans, even in places where they don't go! Criminals should be taken to this island to do a big clean up and put themselves to some use.
 

Anna Undebeck (64)
Saturday February 23, 2013, 11:34 pm
Very sad...
 

Roshani S. (65)
Saturday February 23, 2013, 11:35 pm
Thanks Maureen...Thanks Kim.
 

Roshani S. (65)
Saturday February 23, 2013, 11:47 pm
Brother Parsifal I'm sharing your Article in FB. Thanks for your support for mother nature.
 

Roshani S. (65)
Saturday February 23, 2013, 11:50 pm
Thanks Anna...yes it is so sad but we must start to think again to work in this direction. Main thing is to work first on self. We need to recognize our NEEDS.
 

Care member(0)
Sunday February 24, 2013, 12:11 am
Thanks Roshani for the video, we as human beings should avoid the which are disturbing the nature.
Once again thanks Roshani
 

Giana Peranio-paz (181)
Sunday February 24, 2013, 12:36 am
Very sad, birds fly, the waters carry all the garbage all over, so this is really no surprise, we have completely polluted our beautiful earth! Thanks Roshani, I guess the only way is to change ourselves and to pass it on!
 

paolo gualandri(0)
Sunday February 24, 2013, 1:05 am
thanks for video..... :(
 

D D. (80)
Sunday February 24, 2013, 1:09 am
This is an extremely painful video to watch....I can't help but think that most of that trash is coming from cruise ships.
 

Tanya W. (5)
Sunday February 24, 2013, 1:09 am
Sadly noted. We live in such a fake world when plastic can be mistaken for food for babies. We need to do more to irradicate plastic and recycle what we cannot irradicate. I hope the future it brighter for the bird life on this island.
 

Roshani S. (65)
Sunday February 24, 2013, 1:14 am
Thanks Giana, yes this all the result of Stupidity or lack of knowledge.
 

Roshani S. (65)
Sunday February 24, 2013, 1:18 am
Thanks care2 member from Chennai, Giana, DD, and Tanya for your valuable time.
 

Jaime A. (4)
Sunday February 24, 2013, 1:31 am
Noted, another tragedy.
 

Veronique L.(154)
Sunday February 24, 2013, 1:48 am
Oh my God this is so sad...it brings tears to my eyes to see such beauty trampled upon. Very painful to watch, but thanks for sharing it
 

Veronique L.(154)
Sunday February 24, 2013, 1:49 am
Noted of course
 

Roshani S. (65)
Sunday February 24, 2013, 2:01 am
Thanks Veronique for your valuable comment. Thanks Jaime...
 

paul m. (90)
Sunday February 24, 2013, 5:27 am

Thanks for ..
 

Many Feathers(64)
Sunday February 24, 2013, 5:30 am
thanks
 

John Gregoire(221)
Sunday February 24, 2013, 6:25 am
Sad and all too true. Too mnay people and too many uncaring people on this planet.
 

Roshani S. (65)
Sunday February 24, 2013, 6:40 am
Thanks my care2 members Paul, Many Feathers and John...
 

Bernard Cronyn (30)
Sunday February 24, 2013, 6:48 am
This damage to a marine environment is just a tiny part of the overall consequences of the enormous explosion in human population over the last half century. In spite of this and countless other issues from climate change to habitat loss a tiny fraction of the money spent on infertility research is spent on better contraception whilst politicians to popes to economists to priests and to mullahs all demand of the populace breed, breed breed!
 

Roshani S. (65)
Sunday February 24, 2013, 7:12 am
Dear brother John I can feel pain in your comment and I'm watching a bird in your profile picture. I can understand you.
 

Ann B. (85)
Sunday February 24, 2013, 7:23 am
Thanks for sharing - very sad. Why do people keep using the oceans/rivers/lakes/etc. as trash bins. It makes me sick.
 

Ruth S. (263)
Sunday February 24, 2013, 7:32 am
Heartbreaking picture.
 

Ruth S. (263)
Sunday February 24, 2013, 7:33 am
Sorry I meant to say Heartbreaking video.
 

Shanti S. (0)
Sunday February 24, 2013, 7:37 am
Thank you.
 

Past Member(0)
Sunday February 24, 2013, 8:00 am
All that natural beauty and it's destruction by man. Very sad.
 

J. William H. (1)
Sunday February 24, 2013, 8:01 am
thanks
 

J. William H. (1)
Sunday February 24, 2013, 8:11 am
thanks
 

Roshani S. (65)
Sunday February 24, 2013, 9:25 am
@Bernard Cronyn the issues of environment and climate change etc are not at all related with population growth but it is due to lack of understanding in our educated people.
 

Roshani S. (65)
Sunday February 24, 2013, 9:29 am
Message from Devansh brother,

My Dear Friend Bernard,
Thanks for your message.
I appreciate your efforts to understand the problem and share this good message, but I beg to differ with you at root cause of the problem. According to you, the root cause of problem is increase in population. I feel, population is not the problem. The problem is somewhere else.
In my opinion the root cause of all this problems lies in,
1. Profit motive behind everything. Which leads to capitalism, industrialism, creating artificial demands, making a lay man a consumer, teaching a lay man that consumption is the way of life with ads and movies.
2. Centralized systems, in which a human being cuts off from other human beings and rest of the nature. A human being in current centralized systems becomes just a consumer. He works for some corporation for money, purchases things from market, disposes them irresponsibly and then all the waste is dumped in far away places as shown in the video shared.
3. Unless, until we understand that life is much more than just the profit and there are greater dimensions in life than just economy, profit, material and sensory excess! We cannot come out of the problems we are discussing here.
Without addressing human understanding if we try to address the problem, we may propose some short term solution, which will not solve the problem from root level.
With Regards,
Devansh
 

Patricia Cannell(674)
Sunday February 24, 2013, 9:35 am
I must say I am not surprised. Terribly depressed by the film, but not surprised. Is this our future???
 

Parsifal Rain Satori (103)
Sunday February 24, 2013, 10:00 am

Thank you sister Roshani, I admire you for your wise friend(s) Devansh, you quote

Please check out this clip - it is absolutely contradictorily to 'care'2 agenda (!)
Issues like Geo Engineering or GMO, mandatory vaccinations, junk food (even this stuff what we consider to be human like nutrition), the pollution of our sacred elements by huge Globalist corporations, wars, the contamination by radioactivity and voluntarily by cellphones, WIFI nets and a series of other serious threats is not included in this video.
If you see it this way, we should think how we can preserve mankinds survival with a shrinking population.
Overpopulation is a Myth

Have you seen the Geo Engineering video, Henriette M. passed on ?
200 species a day being extinct - useless to say for good and this experiments have of course enormous impact to the entire world population and biosphere.

- Thank you again for posting this mindblowing video - Parsifal
 

Allan Yorkowitz (92)
Sunday February 24, 2013, 10:41 am
Half way into the video, I had enough. This is the kind of video that needs to be mass produced, and sent out to every high school in America. All you need are a handful of children who after viewing this, are willing to make a difference.
 

Bartlomiej T.(206)
Sunday February 24, 2013, 11:01 am
So hearbreaking.... It's hard to imagine how innocent birds have to die in pain because of people's ignorance to the environment.
 

Ro H. (0)
Sunday February 24, 2013, 11:47 am
ty
 

Marilyn Byrne(1)
Sunday February 24, 2013, 12:35 pm
This video breaks my heart (as do many others) It's not the people whe care that haven't the courage to face up to what's going on , it's the fact that there are far too many people who have a couldn't care less attitude and the people like us on Care 2 just have to go on fighting and never giving up in the hope things will eventually change.I hope with all my heart that they will!!! Marilyn B.
 

Kye J. (40)
Sunday February 24, 2013, 12:36 pm
Spay and neuter the human race ie 100% of it.
If any species deserves to be made extinct it is humans.
 

Pam W. (268)
Sunday February 24, 2013, 12:38 pm
A horrible way for these birds to die.
People need to be responsible for their trash and to keep it away and out of the water.
 

Jade N. (2)
Sunday February 24, 2013, 1:27 pm
this is so awful! i can't believe this has happened for so long. someone needs to do something. it can't just be us on care2. we need to raise more awareness.
thank you Roshani. will definitely watch the documentary.
 

Aurea Walker(62)
Sunday February 24, 2013, 2:52 pm
Tears of joy for the 1st few seconds of the video, tears of sadness for the next minute and then tears of utter FURY for the destruction of these beautiful birds! Will we ever learn how destructive we are? Not just within ourselves with continual wars, but with everything else. OVERPOPULATION IS NOT A MYTH! IT IS ALL TO REAL!
 

Colleen L. (2)
Sunday February 24, 2013, 3:15 pm
So very sad. People can be so cruel and disgusting. How they can live with themselves knowing they are doing these retarded acts of violence to sea and land animals, when all they have to do is use a bag to toss the trash into. Wish these idoits would vamish from the Earth, if they aren't going to go by the rules. Thanks Roshani
 

Elvira S. (82)
Sunday February 24, 2013, 3:26 pm
Very sad, and I agree with Alan, this needs to be shown to every child in school. I've posted this on my FB page, but I can tell you who is going to view it, mostly my friends who I have met on care2, or through animal rescue organizations, not my relatives, that's for sure. It is difficult to fathom that people do not realize that once we've destroyed this earth, there is nothing else. You can't buy your way out. Even very rich people's children' children will question what was done today by careless consumerism.
 

Glenville J O.(0)
Sunday February 24, 2013, 3:39 pm
Thank you for that powerful reminder Roshani. That was a truly horrific film to watch, and I can't see the irresponsible dumping of rubbish by us humans happening any time soon. When I was growing up items were mostly made out of metal, glass, wood, paper, cardboard, or some other organic material, and we were taught in school to put our litter into litter bins, but now litter is just about everywhere. Household waste, building waste,and fast food waste covers our land, our rivers, and our seas, we've even got loads of the stuff orbiting our planet. We need to urgently switch over to recyclable and organic materials once again, teach children the importance of looking after our planet, and avoid plastic as much as possible.
 

Richard Lehr(1)
Sunday February 24, 2013, 4:07 pm
This video brings across things we need to know, but don't really think about . Thank You
 

Birgit W. (43)
Sunday February 24, 2013, 4:16 pm
We all have take better care of our planet. Starting with teaching our kids.
 

Aaron Bouchard (4)
Sunday February 24, 2013, 7:24 pm
Sadly noted thanks
 

Carla van der Meer (36)
Sunday February 24, 2013, 8:24 pm
So sad what we are doing to the world.
 

Gabriele R.(19)
Sunday February 24, 2013, 10:00 pm
It is so sad to see animals suffer like this,just because humans are so inconsiderate and careless.I do agree that we must educate our future(children).
 

leona maddux(0)
Sunday February 24, 2013, 10:33 pm
noted/thank you
 

Julie W. (11)
Monday February 25, 2013, 1:23 am
That was heartbreaking - I could hardly watch. It left me feeling helpless, as I can't change other people's behaviour.
 

Jane Mckenzie(16)
Monday February 25, 2013, 3:26 am
terrible
 

Yvonne Taylor(38)
Monday February 25, 2013, 4:27 am
Next time you throw something small on beach or ocean, it is not inconsequential, also what about ships refuse and all the barges floating around with no where to dump, full of garbage? Please consider this anywhere you throw garbage, birds live in the forest and cities too!
 

Roshani S. (65)
Monday February 25, 2013, 6:31 am
Dear brother Parsifal Rain Satori thanks for your valuable comment and thanks for sharing vid . I haven't seen Geo Engineering Video.
I think understanding is here main reason for all problems. Understanding(sanskaar) develop in humanbeings from Education. And when we see our education system, HUMANIZATION is disappear.
Look this in another angle ....
When we saw whole planet we find four stage in this existence,
1) Matter
2) Pran stage ( all cells which is taking part in respiration) - so all plants, animals, and human cells comes in this stage)
3) Animals stage
4) Human being stage
When we draw a drawing according % of this all four stage we will get triangle shape. Where in base we get Matter stage which is in very high %, after that we can put Pran stage which is less then matter stage, Animals stage offcourse more less then Pran stage (cells/ tissues/ plants) and in last we get human stage with in very less amount.
So here human being population is not the problem.
Anyway it is the subject of long discussion and this platform is not sufficient and we can't get any result/ achievements. Discussion here is the loss of our effort. I think systematic group discussion is good for this issue.
With regard
Roshani
 

Roshani S. (65)
Monday February 25, 2013, 6:32 am
Thanks everyone for valuable comment and time.
 

Barbara Erdman (61)
Monday February 25, 2013, 7:23 am
Noted and Thank-You Roshani :0 Thank
 

Michela M.(2853)
Monday February 25, 2013, 9:35 am
Already posted in

http://www.care2.com/c2c/groups/disc.html?gpp=28682&pst=1339141
 

Kirsten Taufer(43)
Monday February 25, 2013, 10:30 am
WOW. Heart breaking. Posted to facebook.
 

Robert K. (15)
Monday February 25, 2013, 2:09 pm
My God! Midway was the scene of one of the biggest battles of WWII and it seems that it never ended, just found new and more innocent victims. What's even more heartbreaking about this is that birds are so very intelligent and people seem to care no more about them than they would a bug.
 

SuSanne P.(126)
Monday February 25, 2013, 9:53 pm
Thank you DEARLY for this Video. Yes, PLASTIC IS FOREVER as I've been trying for decades to find a way to boycott it 100% which I've finally accepted is unrealistic not being a millionaire. I gave you and Parcifal (as many others) Stars, but each post I've read deserves many more.
 

Roshani S. (65)
Monday February 25, 2013, 11:59 pm
@Michela thanks for the comment. I wasn't aware that this post is already post in care2 site. Actually when I saw this video which is shred by my FB brother Dewansh, I was shocked after watching the result of our activity. Yes I heard that animals eat these all dangerous elements spreading by us but it is more different to watch truth with your own eyes.
And after watching these all comments of my care2 friends I feel proud that if any one person change himself/ herself or can change others...this will be a great achievements for me.
Thank you :)

 

Roshani S. (65)
Tuesday February 26, 2013, 12:09 am
Thanks dear all Ann, Ruth, Shanti, Past member :) , J. William H., Patricia Cannell, Allan Yorkowitz, Bartlomiej, Ro H., Marliyn Byrne, Key J, Pam W., Jade N., Aurea Walker, Colleen L, Elvira S., Glenville J O, Richard Lehar, Birgit W., Aaron Bouchard, Carla van der Meer, Gabriele R., Leona maddux, Julie W., Jane Mckenzie, Ivy Taylor, Barbara, Kirsten, Robert and dear SuSanne Valuable time and commented. :)
 

Roshani S. (65)
Tuesday February 26, 2013, 12:38 am
Thanks Michela I saw the link you shared. It is more horrible .. Thanks for sharing this link with me...
 

monka blanke(66)
Tuesday February 26, 2013, 10:23 am
this is very sad; but it mustn't be this way. The ocean is not a bin, we must treat it accordingly.
 

Klaus Peters(5)
Friday March 1, 2013, 12:42 am
Sad to see those poor chicks suffering a horrible death on Midway Is. I have seen a similar video before on C2, from the same photographer Chris Jordan, this is the never version and not only shows dead birds filled with plastic but also the suffering of the dieing chicks. It is just absolutely insane what the human race is doing to the environment. Planet earth is supposed to be shared by any form of life on earth, but we seem to claim earth is only for us, such an uneducated view. Selfishness and greed seems to rule and that will be of our undoing.
Roshani, you mentioned :"Previous (when I was child) in India's villages villagers used leaf plate in any function. But now they are using plastic coated leaf plates........ "
That brings back memories, I married an Indian girl 40 years ago and spent 5 years In SE Asia, one of my favourites was Masala Dosa on a banana leaf, a real one, not plastic! But now we live in Australia and the Dosa is served on stainless steel plates in Indian restaurants, not plastic. But I did give it a go and planted a banana tree, in our climate not many 'plates ' can be harvested, but only for special occasions. But at least my curry leaf tree is doing very well to the delight of my wife and other Indian friends.
 

Sergio Padilla(42)
Friday March 1, 2013, 8:50 am
I´ve already seen this, it sucks!
 

Unnikrishnan Sasidharan(25)
Saturday March 2, 2013, 5:07 am
thnx for sharing
 

Roshani S. (65)
Wednesday March 6, 2013, 3:43 am
Thanks Klaus Peters, Sergio Padilla & Unnikrishnan....