Sunday, July 7, 2013

कैसा विकास चाहिए?

केदारनाथ में दो सौ राहत कर्मी खराब मौसम के कारण फंसे....

देखिये यदि विकास का पैमाना भौतिक सुख सुविधाएँ हैं जिससे आप अपने शरीर और परिवारजनों के अलावा अन्य की शारीरिक (भौतिक) रक्षा कर पाए तो यहाँ भी हम फिसड्डी ही साबित हुए. (उत्तराखंड की स्थिती को देखते हुए)

सेटेलाईट को अंतरिक्ष में स्थापित कर स्वयं को विकसित समझने वाले यह देखें कि हम एक भी प्राकृतिक आपदा (अभी तो फिलहाल सारी आपदाओं का जड़ मानव स्वयं रहा) का मजबूती से सामना नहीं कर पाते अभी भी हम इन आपदाओं (अभी तो सचमुच की आपदा आई ही नहीं है जब आएगी तो अपनी स्थिति का हम आकलन ही नहीं कर सकते) के सामने एकदम बौने नजर आते हैं....

लाखों धान, गेहूँ/अनाज खुले में रखे रहने के कारण बारिश में भींग कर वर्तमान की आधुनिकतम सदी २०१३ में भी सड़ जाता है और हम G.M.O. की सोचते हैं...
तो हम किस मुँह से स्वयं को विकसित मानते हैं?

इसका अर्थ यह है कि हमने विकास का अर्थ नहीं पहचाना! विकास शब्द तो पकड़ लिए पर अर्थ तक नहीं पहुँच पाए.
यदि हम विकसित होते तो सर्वप्रथम हम खुशियाली और बगैर शिकायत के जीते. हम पूरकता और सहयोग के अर्थों को समझते. हम वास्तविकता की समझ के साथ जीते फलस्वरूप चारों ओर खुशियाली ही खुशियाली होती व शिकायत मुक्त होते...
तब यह धरती स्वर्ग कहलाती....