Tuesday, June 10, 2014

अनुसन्धान का लोकव्यापीकरण

मानव का पुण्य रहा तभी यह अनुसन्धान सफल हो पाया|

इस बात को लेकर मैं बहुत भरोसा करता हूँ कि मानव इस प्रस्ताव को स्वीकारेगा| मुझे इस प्रस्ताव में सर्वशुभ का रास्ता साफ़ साफ़ दिखाई पड़ा| तभी मैं इस प्रस्ताव के लोकव्यापीकरण में लग गया| कब तक?आखरी साँस तक! जब तक मेरी साँस चलेगा, मैं इस पर ही काम करूँगा|

इस प्रस्ताव में इतनी बड़ी संभावना दिखाई पड़ती है कि आदमी जाति अपराध मुक्त हो सकता है, अपना पराया दीवार से मुक्त हो सकता है| यह दोनों हो गया तो धरती के साथ होने वाला अत्याचार समाप्त होगा| अत्याचार यदि रुका तो धरती अपनी बची ताकत से जितना सुधार सकता है वह सुधार लेगा|

लोकव्यापीकरण के क्रम में अनेक लोगों से मिलना हुआ| अनेक लोगों ने अपने अपने तर्क को प्रस्तुत किया|

“तुम बहुत आशावादी हो!” यह बताया गया|

निराशावादी से आपने क्या सिद्ध कर लिया, यह बताइए| मैंने उनसे पूछा|

“तर्क समाप्त हो गया तो हम नीरस हो जायेंगे|” यह आशंका व्यक्त की गई|

तर्क के लिए तर्क करने से नीरसता होती है या तर्क को प्रयोजन से जोड़ने से नीरसता होती है? यह प्रस्ताव तर्क को प्रयोजन से जोड़ने के लिए है| प्रयोजन सम्मत तर्क समाधान को प्रमाणित करता है| समाधान आने से नीरसता दूर होगा या व्यर्थ के तर्क बनाये रखने से नीरसता दूर होगा? केवल चर्चा करते रहने से नीरसता दूर होगा या उपलब्धियों से नीरसता दूर होगा? ऐसा मैंने उनसे पूछा|

“एक व्यक्ति की बात को कैसे माना जाए?” यह शंका बताई गई|

व्यक्ति के अलावा आपको पढ़ने/सुनने को क्या मिलेगा?
जो कुछ भी आज तक कहा गया है और आगे भी जो कहा जायेगा, लिखा जायेगा वह किसी न किसी व्यक्ति द्वारा ही होगा|

“बहुत सारे लोग तो भिन्न बात को मानते हैं?” यह बताया गया|

बहुत सारे लोग मिलकर ही तो इस धरती को बर्बाद किया|यदि कुछ लोग उस भिन्न बात को मना भी कर देते तो इतना बर्बाद नहीं होता| सब लोग उस “भिन्न बात “ को मान लिए तभी तो धरती बर्बाद हुई| सब लोग बर्बादी के रास्ते पर हो गए वह रास्ता ज्यादा ठीक है? या एक व्यक्ति सही की ओर रास्ता दिखा रहा है वह ज्यादा ठीक है?

(जनवरी २००७, अमरकंटक)

स्रोत- संवाद-२ (मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद पर आधारित)
प्रणेता-श्री ए. नागराज

क्या धरती पर आदमी रह पायेगा या नहीं?

"विज्ञानी यह बता रहे हैं धरती का तापमान कुछ अंश और बढ़ जाने पर इस धरती पर आदमी रहेगा नहीं| सन् १९५० से पहले यही विज्ञानी बताते रहे कि यह धरती ठंडा हो रहा है| सन् १९५० के बाद बताना शुरू किये यह धरती गर्म हो रहा है| यह सब कैसे हो गया? इसका शोध करने पर पता चला इस धरती पर सब देश मिलाकर २००० से ३००० बार परमाणु परिक्षण किये हैं| ये परिक्षण इस धरती पर ही हुए हैं| इन परीक्षणों से जो ऊष्मा जनित होते हैं उसको नापा जाता है| यह जो ऊष्मा जनित हुआ, वह धरती में ही समाया या कहीं उड़ गया? यह पूछने पर पता चलता है यह ऊष्मा धरती में ही समाया है जिससे धरती का ताप बढ़ गया| धरती को बुखार हो गया है| अब और कितना बढ़ेगा उसकी प्रतीक्षा करने में विज्ञानी लगे हैं| इसके साथ एक और विपदा हुआ प्रदूषण का छा जाना| ईंधन अवशेष से प्रदूषण हुआ| इन दोनों विपदाओं से धरती पर मानव रहेगा या नहीं, इस पर प्रश्न चिन्ह लग गया है|
धरती को मानव ने अपने न रहने योग्य बना दिया| मानव को धरती पर रहने योग्य बनाने के लिए यह अनुसंधान (चेतना विकास मूल्य शिक्षा/जीवन विद्या/मध्यस्थ दर्शन) प्रस्ताव रूप में है|"

स्रोत- संवाद-२ (मध्यस्थ दर्शन सहअस्तित्ववाद पर आधारित)
प्रणेता-श्री ए. नागराज

Wednesday, June 4, 2014

हम पढ़े लिखे समझदार और सुखी लोग

हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हमने इस धरती को बीमार किया| 
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हमने नदियों को दूषित किया| 
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हम धरती के पेट फाड कर कोयले/तेल/खनिज पदार्थ इतनी तेजी से निकाल रहे हैं ताकि इस धरती की गर्मी को पचाकर रखने वाला/धरती को संतुलन करने वाली व्यवस्था ही चरमरा जाये| 
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हम इस धरती को बर्बाद करने वाली चीजें बनाना सिख रहे हैं विज्ञान के नाम पर|
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हम परमाणु परिक्षण कर धरती को और भी ज्यादा गर्म कर रहे हैं ताकि धरती और मानव जाति और बाकी अवस्था सभी अपने मूल स्वरुप में आ जाये| जैसे पानी वापस हाइड्रोजन और ऑक्सीजन बन जाए|
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हमारे बच्चे अब शराब, जुआ और ड्रग्स लेने लगे हैं| मतलब अब संस्कारी हो चले हैं| और बाकी सब क्या कर रहे हैं यह भी आपको सूचना रूप में पता है|ठीक है आपके बच्चे ये सब नहीं कर रहे हैं पर और जो बच्चे/ युवा हैं जिनके साथ इनका उतना बैठना है वे तो इस दलदल में फंसे हैं| कब तक आप उसे इस भयानक वातावरण से बचाकर रख सकेंगें?
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हम अस्पताल में एक मृत शरीर को भी देने के लिए पैसे वसूलते हैं|
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हम लिंग परिक्षण करके कन्याओं की हत्या का पाप अपने सर लेते हैं|
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हम अपनी कलम का इस्तेमाल मानव जाति को एक करने की बजाय द्वेषपूर्ण वातावरण फ़ैलाने में करते हैं|
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं... क्योंकि हम दोहरे चरित्र में जीने के आदी हो गए हैं| परदे पर एक अच्छे इंसान का किरदार निभाते हैं जबकि असलियत में हम कुछ और ही होते हैं|
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हमारी फैक्ट्रियों का धुआं और राख धरती व वातावरण को जहरीला बना रहा है|
हम वे पढ़े लिखे समझदार और सुखी लोग हैं......जिनको सत्य का पता नहीं पर कर्म कांड में स्वयं के साथ अन्य को भी उलझा कर रखे हैं|
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हम सड़क बनाने के लिए हर भरे वृक्ष को बेदर्दी से काट कर उन पंछियों का जो बेजुबान है उनका आसरा छीन लेते हैं| धरती की सुरक्षा करने वाले वृक्ष को काट देते हैं|
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...जिसने शिक्षा को व्यवसाय बना लिया है| बजाय बच्चों में स्वयं के प्रति आत्मविश्वास, सम्मान और मानवीयतापूर्ण आचरण विकसित कैसे हो इस पर विचार करने के|
हम वे पढ़े लिखे समझदार और सुखी लोग हैं...जो आपस में ही एक घर के नीचे रहते (लड़ाई झगडा,अविश्वास, शंका) हैं जीते नहीं| 
हम वे पढ़े लिखे समझदार और सुखी लोग हैं...जो अपनी खुशी के लिए दूसरों पर आश्रित रहते हैं| अपना रिमोट कंट्रोल दूसरे के हाथ देकर खुद को समझदार और सुखी मानते हैं|
हम वे पढ़े लिखे समझदार और सुखी लोग हैं...जो कपड़े, पैसे, गहनों, गाड़ियों, बंगलों, तरह के व्यंजनों इत्यादि जो की निरंतर रहने वाली चीज नहीं है उससे निरन्तर रहने वाली चीज (सुख, सम्मान आदि) की अपेक्षा रखते हैं| 
हम पढ़े लिखे लोग समझदार और सुखी हैं...क्योंकि हमें "न्याय", "धर्म", "सत्य" क्या है? इसका ज्ञान नहीं फिर भी कोर्ट में न्याय कि जगह फैसले करते हैं|
हम वे पढ़े लिखे समझदार और सुखी लोग हैं...समाज सेवा के नाम पर अपनी ही सेवा कर रहे हैं|
हम वे समझदार लोग हैं जो अपने अपने खेतों को बेचकर मल्टीनेशनल कंपनियों के गुलाम बन रहे हैं|
हम वे समझदार लोग हैं जो देशी बीजों के बजाय संकरीत बीजों का प्रयोग कर स्वयं के साथ धरती और पशुओं को भी बर्बाद कर रहे हैं|
हम वे समझदार लोग हैं जो बेतहाशा कीटनाशक का प्रयोग अपनी फसलों पर कर रहे हैं ताकि बाकियों का जो हाना हो वो तो हो पर मेरी जरूरतों के लिए धन मिल जाये भले ही मुझे यह समझ नहीं कि मेरी जरूरतें इन्हीं समाज से पूरी होती है|
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क्या अब भी हमें लगता है कि हम समझदार हैं? कि "समझदार होने की आवश्यकता है? इसे स्वयं में जाँचे|