Sunday, October 2, 2016

जीव-चेतना में "न्याय" केवल चाहत के रूप में है.

हाल में जो भी घटनाएँ घट रही है इन सबके के कारण बाबा जी की इस पोस्ट "जीव-चेतना में "न्याय" केवल चाहत के रूप में है" ने काफी प्रभावित किया| बाबा ए. नागराज शर्मा जो की "चेतना विकास मूल्य शिक्षा/ मध्यस्थ दर्शन/ जीवन विद्या/ अस्तित्व मूलक मानव केन्द्रित चिंतन के प्रणेता है ने वर्तमान स्थिति की काफी गहरे चिंतन किया जो इस स्थिति को समझने में मददगार है| इस पोस्ट को मैंने मध्यस्थ दर्शन ब्लॉग से लिया है जिसे राकेश गुप्ता भैया जी द्वारा संचालित किया जाता है|
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जीव-चेतना में जीते हुए मनुष्य में न्याय "चाहत" के रूप में होता है, न्याय प्रमाणित होना नहीं बन पाता। जीवन में जो १० क्रियाएं हैं - उनमें से ४.५ क्रियाएं ही जीव-चेतना में प्रमाणित हो पाती हैं। बाकी ५.५ क्रियाओं के प्रमाणित होने की अपेक्षा बनी रहती है। ऐसे में मनुष्य स्वयं के साथ न्याय चाहता है, पर दूसरों के साथ अन्याय करता रहता है। "स्वयं के साथ न्याय" का मतलब ऐसा निकलता है - मेरा सुविधा-संग्रह बना रहे, दूसरों का चाहे जो भी हो। यही सोच आगे समुदाय के स्तर पर है, यही देश के स्तर पर है। "मेरे समुदाय के साथ न्याय", "मेरे देश के साथ न्याय"... इसका मतलब यही निकलता है, मेरे समुदाय का सुविधा-संग्रह बना रहे, बाकी सब चाहे मिट जाएँ। मेरे देश का सुविधा-संग्रह बना रहे, बाकी सब चाहे मरें। ऐसे क्या न्याय होगा?
जीव-चेतना में "प्रसन्नता" को न्याय माना, "दर्द" को अन्याय माना। प्रसन्नता (pleasure) और दर्द (pain) को संवेदनाओं के अर्थ में पहचाना। जैसे - एक परिवार के सदस्य की हत्या हो गयी। उस परिवार के सभी सदस्य दर्द से भर गए। अब क्या करें? उस हत्यारे की हत्या करने से, उसे पीड़ा पहुंचाने से, दर्द से भरे परिवार को प्रसन्नता मिलती है - ऐसा सोचा गया। इसको "न्याय" माना। "हमको दर्द नहीं होना चाहिए!" - इसको मौलिक-अधिकार माना। इसको jurisprudence कहा। इस धरती के सभी देशों की न्याय-संहिताओं की सोच इस पर बैठा है। "दर्द हुआ", उसके बदले में "प्रसन्न" करने के लिए राज्य-व्यवस्था बना दी। किस दर्द के बदले में क्या दंड देना है - इसको संविधान कह दिया। इस तरीके से न्याय तक हम क्या पहुँच सकते हैं? क्या एक गलती को दूसरी गलती से रोका जा सकता है? क्या एक अपराध को दूसरे अपराध से रोका जा सकता है?
जीव-चेतना में जीते हुए - न्याय की अपेक्षा जीवन में होती है, लेकिन न्याय को प्रमाणित करने की योग्यता नहीं रहती। न्याय मानव-चेतना में ही प्रमाणित होता है। न्याय का मतलब है - संबंधों की पहचान, मूल्यों का निर्वाह, मूल्यांकन, और उभय-तृप्ति। सम्बन्ध जीवन और जीवन के बीच होता है। जीवन को समझे बिना न्याय कैसे होगा?
जीवचेतना में जीते हुए संबंधों के नाम तो हम पा गए हैं, पर संबंधों के प्रयोजन पहचान नहीं पाये हैं। इससे क्या होता है - जब तक "स्वयं के लिए न्याय" होता रहता है - तब तक हम सम्बन्ध को निभाते रहते हैं, जब "स्वयं के लिए न्याय" नहीं होता - या अपनी संवेदनाओं के अनुकूल बात नहीं होती, तो सम्बन्ध को जूता मार देते हैं। जबकि जीवन और जीवन का सम्बन्ध निरंतर बना ही हुआ है। संबंधों में न्याय प्रमाणित होने के लिए संबंधों की सटीक पहचान होना आवश्यक है। उसके लिए जीवन को समझना आवश्यक है। देखिये - शरीर के किसी अंग-प्रत्यंग (जैसे हाथ, पैर, दिमाग, ह्रदय, गुर्दा) में न्याय की प्यास नहीं है। न्याय की प्यास जीवन में ही है। शरीर को हम जीवन माने रहते हैं - जीव-चेतना में। ऐसे में क्या जीव-चेतना में न्याय मिल सकता है?
मानव-चेतना पूर्वक न्याय के प्रमाणित होने की प्रथम-स्थली है - परिवार। इस तरह व्यवस्था का जो स्वरूप निकलता है, वह है - परिवार मूलक स्वराज्य व्यवस्था। इस तरह संविधान का जो स्वरूप निकलता है - वह है, मानवीय आचरण स्वरुपी संविधान। क्या होना चाहिए - आप सोच लो!
- बाबा श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित (दिसम्बर २००८, अमरकंटक)
साभार- मध्यस्थ दर्शन ब्लॉग (जीवन विद्या - सह अस्तित्व में अध्ययन)

Tuesday, September 27, 2016

युद्ध सही या गलत?

अभी हाल में ही उरी की घटना हुई| देश भर में लगभग बदला लेने की मानसिकता तैयार हुई| बदला लेना मतलब युद्ध जैसा कि सीरिया में हो रहा है| सभी घटनाओं को देखते हुए कुछ प्रश्न तैयार किए हैं आशा है कि सही विकल्पों का चुनाव कर हम एक निष्कर्ष तक पहुँचने में कामयाब होंगे जो सावभौमिक और सार्वकालिक हो| धन्यवाद| प्रश्न A. किसी भी युद्ध में सबसे लाभदायक स्थिति (भ्रम में इन्हें लाभदायक लगता है) में कौन रहता है? 1) युद्ध में विजयी देश 2) युद्ध में जिताने के लिए स्वयं को न्यौछावर करने वाले सैनिकों के परिवार 3) विजयी देश की जनता 4) हथियारों का निर्माण व लेन देन में लगी कंपनियाँ और लोग -------------------------- प्रश्न-B. किसी भी युद्ध से क्या परिणाम होता है? 1) दोनों देश की जनता में प्रेम बढ़ता है और चारों तरफ खुशियाली फैलती है| 2) दोनों देश की जनता में दूरियाँ और बढ़ जाती है| नफरत और बदले की भावना पनपने लगता है| 3) पर्यावरण, जीव-जन्तु, मानव सब व्यवस्थित रहते हैं| 4) इन सबका आने वाली पीढ़ी (युद्ध में शामिल देश) पर बहुत ही ज्ञान वर्धक प्रभाव पड़ता है| साथ ही उनका सुंदर भविष्य बनता है| 5) हारने वाला देश यह सबक सीख जाता है कि अब मुझे कभी अपने से ताकतवर देश पर कभी हमला नहीं करना चाहिए| पहले खुद को ताकतवर बनाना होगा फिर युद्ध की सोचना होगा ताकि हम अपना बदला ले सकें| 6) उस जीवन ( चैतन्य इकाई) के विचारों में चल रही बुराइयाँ का हमेशा के लिए अंत हो जाता है जिसका शरीर/ साधन इस युद्ध में नाश हो जाता है और उसका अगला शरीर यात्रा सुखद होता है| ---------------------


प्रश्न C (i)-युद्ध क्या है? 1) समस्या का स्थायी समाधान 2) समस्या का क्षणिक समाधान 3) आवेश का परिणाम 4) प्रेम, शांति और समझदारी का परिणाम
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प्रश्न C (ii)- युद्ध किस प्रकार का आवेश है? 1) सम आवेश 2) काम आवेश, 3) क्रोध आवेश, 4) लोभ आवेश, 5) मोह आवेश, 6) मद आवेश, 7) मत्सर्य आवेश --------------------- प्रश्न D- युद्ध में कौन कौन से मूल्य (स्थापित व शिष्ट मूल्य) जनमानस में बहने लगते हैं? 1) विश्वास - सौजन्यता 2) सम्मान- सौहार्द्रता 3) स्नेह- निष्ठा 4) ममता- उदारता 5) वात्सल्य- सहजता 6) गौरव- सरलता 7) श्रद्धा - पूज्यता 8) कृतज्ञता - सौम्यता 9) प्रेम - अनन्यता 10) इनमें से कोई नहीं ----------------------- प्रश्न E -युद्ध किस प्रकार के मानव की मानसिकता है? 1) पशु मानव 2) राक्षस मानव 3) मानव (क्रिया पूर्णता) 4) देव मानव (क्रिया पूर्णता) 5) दिव्य मानव (क्रिया पूर्णता व आचरण पूर्णता सम्पन्न) --------------------- प्रश्न F- शस्त्र का संग्रह या इसके प्रयोग की आवश्यकता किसे होती है? 1) समाधानित मनुष्य को 2) साहसी व्यक्ति को 3) भयभीत व डरे हुए को 4) चोर, उच्चके और डाकू को ---------------------- प्रश्न G - वर्तमान में युद्ध में किसकी बौछार होती है या किस सामग्री/ हथियार का प्रयोग किया जाता है? 1) फूलों की 2) गोलियों (बंदूकों से निकली) 3) परमाणु बम 4) रासायनिक हथियार 5) मिसाइल्स 6) लाठियों-तलवार से, 7) भाला और तीर कमान से 8) पत्थरों से ------------------- प्रश्न H - युद्ध में किस प्रकार की दृष्टि का दर्शन होता है? 1) प्रिय 2) हित 3) लाभ 4) न्याय (मानव मानव संबंध) 5) धर्म (मानव प्रकृति संबंध) 6) सत्य (अस्तित्व सहअस्तित्व है) 7) अन्याय -------------------- प्रश्न I - युद्ध में मानव के किस स्वभाव का दर्शन होता है? 1) धीरता 2) वीरता 3) उदारता 4) दीनता 5) हीनता 6) क्रूरता 7) दया 8) कृपा 9) करुणा ----------------------- प्रश्न J - युद्ध में शामिल होने वाले देशों की जनता- 1) सभी जनता युद्ध की पक्षधर होती है| 2) कुछ युद्ध के पक्ष में और कुछ शांति, प्रेम, भाई -चारे के पक्ष में होती हैं| ----------------------- प्रश्न K - युद्ध के लिए भड़काने / उकसाने हेतु कितने लोग (कायिक, वाचिक, मानसिक, कृत, कारित, अनुमोदित ९ भेदों से) शामिल होते हैं? 1) संबन्धित देश की सभी जनता 2) बहुत थोड़े और भ्रमित प्रवृत्ति के लोग 3) सभी पुरुष 4) सभी स्त्रियाँ 5) सभी बच्चे 6) सभी बुजुर्ग 7) नेतागण व मीडिया --------------------- प्रश्न L- युद्ध में यदि परमाणु बम का प्रयोग हुआ तो धरती का क्या होगा? 1) धरती स्वर्ग हो जाएगी| 2) सभी मानव देवता हो जाएंगे| 3) जीवन नित्य उत्सव होगा| चारों तरफ दिवालियाँ मनेगी| 4) यह धरती एक दूसरा सूरज बन जाएगा| ------------------- प्रश्न M - मानव किसी धरती पर जन्म क्यों लेता है? 1) स्वयं को प्रमाणित करने के लिए 2) लड़ाई-झगड़ा, युद्ध और अपराध करने के लिए 3) प्रकृति के चारों अवस्था (पदार्थ, प्राण, जीव और मानव) के साथ तालमेल पूर्वक रहने लिए| 4) प्रकृति के चारों अवस्था का शोषण के लिए ------------------- प्रश्न N - युद्ध कहाँ नहीं होगा? 1) "जहाँ रोशनी होगी वहाँ अंधकार नहीं होगा, जहाँ समाधान होगा वहाँ समस्या नहीं होगी, जहाँ प्रेम होगा वहाँ युद्ध नहीं होगा|" 2) समझदार लोगों के बीच 3) नासमझ लोगों के बीच --------------------- प्रश्न O - युद्ध को होने से रोकने के लिए आपके पास क्या समाधान है? 1) जब तक मानवीयता का वातावरण न बने तब तक स्वयं की व औरों की रक्षा के प्रति जागरूक हो| स्वयं की सुरक्षा में हथियारों का प्रयोग करते हुए भी मानव की मूल चाहना के प्रति शंका व्यक्त न करना| 2) संवाद 3) एक दूसरे की भावना, वातावरण का सम्मान 4) शिक्षा का मानवीयकरण 5) मानवीय शिक्षा का प्रचार प्रसार 6) एक दूसरे का मूल्यांकन (सही का) व समीक्षा (गलती का) स्नेह व वात्सल्य से करना| व सही का प्रचार प्रसार| 7) एक दूसरे के अच्छे कार्यों की सराहना 8) इनके अतिरिक्त और कोई विकल्प ? उपरोक्त सभी प्रश्नों के उत्तर देने के बाद आप किस निष्कर्ष में पहुँचे? एक निष्कर्ष तक हम सबका पहुँचना बेहद जरूरी है मानव जाति के भविष्य के लिए, इस धरती के लिए जिसमें हम सभी रह रहे हैं, धरती में उपस्थित सभी अवस्थाओं के लिए|

Friday, July 8, 2016

आईएस में शामिल होने गए केरल के 15 मुस्लिम युवक

इन सब स्थिति का जिम्मेदार है "वर्तमान शिक्षा प्रणाली|"
वर्तमान शिक्षा प्रणाली हमारे बच्चों को लाभोन्मादी,कामोन्मादी और भोगोन्मादी के अलावा और किसी बात की शिक्षा नहीं दे रहा है| इसे शिक्षा कहना भी उचित नहीं है|
आप कुछ भी पढ़ाई करो, किसी भी पद में नौकरी करो... बस पैसा कमाना ही उद्देश्य रह गया है| अगर मानवीयता की झलक दिखाई भी देती है तो उनके अपने संस्कार है यह वर्तमान शिक्षा प्रणाली से तो संभव नहीं|
अधिक से अधिक पैसा कमाने की होड़ में हमारे बच्चों को यह भी नहीं दिखाई देता कि वो कौन सा तरीका अपना रहे हैं उसका परिणाम क्या होगा? बस चाहिए पैसा!
किसी भी टीवी चैनल या यू ट्यूब चैनल को ब्लॉक करने से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला| कल कोई दूसरा चैनल खुल जाएगा|
यदि सही मायने में आप (केंद्र सरकार) देश और संसार में शांति चाहती है तो आपको बाकी राज्यों के साथ सहयोग करते हुए "शिक्षा के मानवीयकरण " की आवश्यकता है|
साथ ही सरकारी कर्मचारियों के मानसिकता पर भी कार्य करने की आवश्यकता है|तभी आपको स्थाई समाधान की ओर दिशा बनेगी अन्यथा नहीं|

Saturday, June 25, 2016

मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ? (What do I really want?)

https://www.youtube.com/watch?v=GNccYKVrWzU

मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?
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क्या आप जानते हैं कि आप अपनी जिंदगी में वास्तव में क्या चाहते हैं यदि आपको तीन विकल्प दिए जायें तो क्या इसका पता करने में कुछ मदद मिलेगी?

मैं वास्तव में अपनी जिंदगी में चाहता क्या हूँ?
यह एक मुश्किल सा सवाल लगता है जिसका कोई अंत नहीं दिखता. मेरी जिंदगी के अनेक आयाम हैं और मैं यह कह नहीं सकता कि मैंने जीने के सभी आयामों के बारे में सब कुछ सोच लिया है. यदि कोई मुझे बता दे कि मेरे पास चुनने के लिए ये विकल्प हैं तो शायद मेरे लिए यह पता करना आसान हो जाये! नीचे ३० प्रश्नों की एक लिस्ट है जो एक ही प्रश्न है जो ३० बार पूछा गया है जहाँ मुझे चुनना है ३ विकल्पों से कि मैं वास्तव में क्या चाहता हूँ?

क्या आप इन प्रश्नों का उत्तर देना चाहेंगें, स्वयं को केंद्र में रखते हुए?

राकेश गुप्ता,
ई-मेल: rakesh2715@gmail.com
ब्लॉग: http://madhyasth-darshan.blogspot.com/
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What do I really want?
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Do you know what you really want in your life? Would it help if you had three options to choose from?
What do I really want in my life? It sounds like a difficult and open ended question. There are many dimensions of my living and I can’t say that I have thought through all of them. It will perhaps help if someone told me what choices I really have! What follows is a list of 30 questions, or rather one question asked 30 times over, from different dimensions of human living, where I choose from 3 options, for what I really want?
Would you like to answer these questions keeping
yourself in the center?

By respected brother Rakesh Gupta ji
Email: rakesh2715@gmail.com 

Blog: http://madhyasth-darshan.blogspot.com/
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पहला प्रश्न... 

१. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : हर परिस्थिति में समस्याओं को मैं पहचान लूं और उनको हल कर दूं |
विकल्प-२ : ईश्वर के प्रति समर्पण करते हुए समस्याओं के प्रति तटस्थ बना रहूँ |
विकल्प-३ : जीने के हर आयाम में मैं समाधानित रहूँ. जीने के हर आयाम में क्यों और कैसे का उत्तर मेरे पास रहे |
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1. What do I really want?

Option-1: Seek out problems in any situation and solve them.
Option-2: Being detached from problems by surrendering to God.
Option-3: Being resolved in all dimensions of my living. Having answers to every why and how in all dimensions of my living.


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दूसरा सवाल-

२. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?
विकल्प-१ : निरंतर मजे और जोश बना रहे, संवेदनाओं से लगातार अच्छा लगता रहे|

विकल्प-२ : मैं सुख और दुःख से निष्प्रभावित रहूँ. अपने आध्यात्मिक आदर्श को पाने के लिए मेरी संवेदनाएं बाधा न करें|

विकल्प-३ : सुख की निरंतरता. मैं सुखी रहूँ और सुख बांटू. संवेदनाएं मेरी समझ के अनुसार स्वयं स्फूर्त नियंत्रित रहे|
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2. What do I really want?

Option-1: Non-stop fun and excitement, thereby continuous gratification from senses.

Option-2: Being unaffected from happiness or unhappiness. My senses remain subdued for the pursuit of my spiritual ideal.

Option-3: Continuity of happiness. Being happy myself, I spread happiness. Natural restraint on senses based on my understanding of reality.

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तीसरा सवाल है-

३. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मेरे पास जो है- जैसे पढ़ाई, पैसा, पद, यश, रूप आदि- उससे मेरा आत्मसम्मान सदा ऊँचा बना रहे|

विकल्प-२ : मुझ में अहंकार न रहे, अर्थात मुझे मोक्ष मिल जाये|

विकल्प-३ : मेरा आत्म-विश्वास मेरी वास्तविकता की समझ के आधार पर बना रहे|
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3. What do I really want?

Option-1: High self esteem from what I have - like college degree, money, position, fame, looks, etc.

Option-2: Salvation as absence of ego (self).

Option-3: My self esteem to be from my understanding of reality.


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चौथा सवाल है...

४. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मेरे कर्मों के जो अच्छे फल आयें उनका श्रेय मुझे मिले और जो बुरे फल आयें उनका दोष दूसरे ले लें|

विकल्प-२ :मैं अपने कर्मों के फलों को ईश्वर को समर्पित कर दूं|

विकल्प-३ :मैं अपने सभी कर्मों और उनके फलों की जिम्मेदारी लूं|
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4. What do I really want?

Option-1: I get credit for the favorable outcomes of my actions while others take the blame for unfavorable outcomes of my actions.

Option-2: I surrender outcomes of my actions to God.

Option-3: I take responsibility for all my actions and their outcomes.


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पांचवा सवाल...

५. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प -१ :मैं "जो भी" पाना चाहूँ उसके लिए मेरे मन, वचन और कर्म में एकरूपता हो| 

विकल्प -२ :जैसा मेरे धर्म में बताया है उसके अनुसार मेरे मन, वचन और कर्म में एक रूपता हो|

विकल्प-३ :वास्तविकता की समझ के अनुसार मेरे मन, वचन और कर्म में एक रूपता हो|
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5. What do I really want?

Option-1: Integrity in my thoughts, words and deeds for “whatever” I want to achieve.

Option-2: Integrity in my thoughts, words and deeds based on prescription in my religion.

Option-3: Integrity in my thoughts, words and deeds based on my understanding of reality.


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छठवाँ सवाल ...

६. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मुझे "जो भी" करना है उसके लिए मेरे विचारों में एकाग्रता बनी रहे| 

विकल्प-२ : विचारशून्यता

विकल्प-३ : मेरे विचारों में वास्तविकता की समझ के अनुसार स्पष्टता बनी रहे|
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6. What do I really want?

Option-1: Focused thoughts for “whatever” I want to achieve.

Option-2: Thoughtlessness.

Option-3: Clarity in my thoughts with understanding of reality.


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७. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मैं निरंतर अपनी जिंदगी और कारोबार के बीच में संतुलन बना कर चलता रहूँ| यहाँ जिंदगी का मतलब है मजे करना और "कारोबार का मतलब है- पैसा कमाना|

विकल्प-२ :मेरा हर कार्य ईश्वर की सेवा में रहे. मेरी जिंदगी ईश्वर को समर्पित रहे|

विकल्प-३ : व्यवहार में न्याय प्रमाणित करने के लिए कार्य करूँ|
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7. What do I really want?

Option-1: Continuously strive to arrive at balance between Work and Life (Relationships) – where “Work” means Earn and “Life” means Fun.

Option-2: Every Work to be in the service of God. Life to be devoted to God.

Option-3: Realization of Justice in my relationships determines my Work. Work for Justice in Relationships (Life).


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आठवाँ प्रश्न...
८. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : काम वासना में उन्मुक्त और निर्बाध लिप्त रहना|

विकल्प-२ : वैवाहिक संबंध से मुक्त हो कर मैं अपने आध्यात्मिक आदर्श को पाने में लगूं|

विकल्प-३ : सामाजिक स्वीकृति के साथ मेरा वैवाहिक संबंध हो जिसमें मैं शरीर-यात्रा पर्यंत वफादार रहूँ.
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8. What do I really want?

Option-1: Unrestrained sexual conduct.

Option-2: Freedom from marital relationship to be free for pursuing my spiritual ideal.

Option-3: Marital relationship with social acceptance and being faithful to marriage partner for life.


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अगला सवाल है..

९. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : पैसा और ऐशो आराम| जिंदगी में खूब मजे करूँ|

विकल्प-२ : कम से कम सुविधाओं में जीना| समाज मेरी न्यूनतम आवश्यकताओं का ध्यान रखे और मैं अपने आध्यात्मिक आदर्श को पाने में लगा रहूँ|

विकल्प-३ : भौतिक आवश्यकताओं के प्रति निश्चित होना और मुझ में समृद्धि और उदारता का भाव बना रहे| मैं स्वधन (प्रतिफल, पारितोष और पुरुस्कार) में जीयूं|
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9. What do I really want?

Option-1: Riches and luxuries. “Live life King size.” Enjoy Life by entertainment.

Option-2: Minimalistic living. Society takes adequate care of my frugal material needs while I pursue my spiritual ideal.

Option-3: Definitiveness about my material needs and living with a genuine sense of prosperity and generosity. Enjoy fruits of my labor, offerings from my relations and justified rewards for my deeds.
Having only what is rightfully mine. 


(यहाँ प्रतिफल का तात्पर्य है...प्रकृति के साथ श्रम पूर्वक उत्पादन)

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१०. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : हर वाद विवाद में मैं अपने किसी भी तरह के तर्क से अपने विरोधियों को पूरी तरह परास्त कर दूं| 

विकल्प-२ : मौन...सभी लोग मौन रहे|

विकल्प-३ : सार्थक संवाद| तर्क प्रयोजन से जुड़ा रहे ताकि संवाद निष्कर्ष तक पहुंचे |
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10. What do I really want?

Option-1: Win arguments by every kind of reasoning and convincingly defeat all my opponents.

Option-2: Silence. Everyone to keep quiet.

Option-3: Meaningful dialogues. Reasoning rooted in wisdom to reach a definite conclusion. 


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अगला सवाल..

११. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : सिस्टम के नियमों का पालन करूँ और करवाऊं| 

विकल्प-२ : अपने धर्म के निर्देशों का पालन करूँ और करवाऊं|

विकल्प-३ : सिस्टम जिन नियमों पर आधारित हैं उसे समझूं और इस नियमों को वास्तविकता के अनुरूप बनाने में भागीदारी करूँ और स्वयं वास्तविकता के अनुरूप जियूं|
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11. What do I really want?

Option-1: Obey the Rules of the systems in which I live.

Option-2: Obey the directions of Religion.

Option-3: Understand the underlying principles of the systems in which I live, actively participate in aligning these principles with Reality and living thereby. 


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१२. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : गलती करने वाले को दंड मिले|

विकल्प-२ : ईश्वर का न्याय हो|

विकल्प-३ : अव्यवस्था के कारण को समझा जाये, गलती करने वाले को समझदारी के आधार पर समझाया जाये ताकि उसमें सुधार हो और जहाँ व्यतिरेक/विरोध है, वहाँ समझदारी के आधार पर व्यवस्था स्थापित हो|
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12. What do I really want?

Option-1: Punishment to the wrong doer.

Option-2: God will do Justice.

Option-3: Understand the situation of disturbance and restore orderliness by imparting the Understanding. 


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१३. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मैं अपने जैसी सामाजिक और आर्थिक स्थिति वाले की संगति में रहूँ? 

विकल्प-२ : मैं अपने धर्म के लोगों की संगति में रहूँ|

विकल्प-३ : मैं वास्तविकता की समझ के साथ जीने वालों की संगति में रहूँ ताकि मेरी चेतना का विकास हो, और मैं अपने समझने को और गति प्रदान करूँ|
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13. What do I really want?

Option-1: I have company of those with same background and economic status as mine.

Option-2: I have company of those of same religion as mine.

Option-3: I have company of those who live with understanding of reality.


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१४. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मेरे परिवार में हर सदस्य अपनी मर्जी की करने में स्वतंत्र रहे|

विकल्प-२ : मेरे परिवार के लोग मेरी आध्यात्मिक यात्रा/ कार्य में विध्न ना करें|

विकल्प-३ : मेरा परिवार एक समाधानित मानसिकता के साथ एक इकाई की तरह काम करे तथा परिवार के हर सदस्य के हर निर्णय में शेष सदस्यों की पूर्ण सहमति और सहयोग हो|
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14. What do I really want?

Option-1: Each person in my family is independent and lives in his or her own world.

Option-2: Family supports me selflessly for my spiritual journey.

Option-3: My family functions as a unit with one resolved mindset and every decision of any family member has full agreement and support from rest of the family members.


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अगला महत्वपूर्ण सवाल..

१५. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मुझे अपनी परस्परता में अच्छा लगता रहे| दूसरे मेरी अपेक्षाओं को पूरा करे पर मुझसे कुछ अपेक्षा न रखें| 

विकल्प-२ : परस्परताओं में मैं तटस्थ बना रहूँ|

विकल्प-३ : मेरे व्यवहार में सहजता और ईमानदारी हो| अपनी और दूसरे की भावनाओं के प्रति आश्वस्तता हो| परिवार, समाज, व्यवसाय और व्यवस्था के संबंधों में निर्वाह निरंतरता हो|
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15. What do I really want?

Option-1: I continue feeling good in my interactions with others – wherein others fulfill my expectations from them, while they don’t expect any favors from me in return.

Option-2: Stoic detachment.

Option-3: Naturalness (spontaneity) and honesty (openness) in my behavior while being assured about my own feelings and of others. Harmony in my relations (family, society, work, and systems) by my fulfilling their expectations from me and their fulfilling my expectations from them. 


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१६. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : अपनी गलतियों से सीखना| 

विकल्प-२ : मेरे सारे पाप धुल जाएँ|

विकल्प-३ : अपनी गलतियों का सुधार| नियम को समझना जिससे मुझसे भविष्य में गलती हो ही ना|
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16. What do I really want?

Option-1: Learn from my mistakes.

Option-2: Absolution of my sins.

Option-3: Mend my mistakes. Understand the underlying principle so that I don’t make any mistakes in future. 


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१७. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : स्वस्थ और सुन्दर शरीर - भोगने और संघर्ष करने के लिए| 

विकल्प-२ : स्वस्थ शरीर - आध्यात्मिक साधना के लिए|

विकल्प-३ : स्वस्थ शरीर- मानव परम्परा में जागृति को प्रमाणित करने के लिए|
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17. What do I really want?

Option-1: Healthy body so that I can enjoy more and win more competitions.

Option-2: Body does not become a hindrance in my spiritual pursuit.

Option-3: Healthy body for the purpose of evidencing my understanding and continuity of human tradition. 


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१८. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मेरे माता-पिता की देखभाल के लिए मुझे कोई परेशान न करें| माता पिता अपनी देखभाल स्वयं कर लें|

विकल्प-२ : धर्म-शास्त्रों के अनुसार मैं माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरा करूँ|

विकल्प-३ : मैं अपने माता-पिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को कृतज्ञता पूर्वक वहन करूँ| उनकी वृद्धावस्था में उनकी सेवा करूँ|
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18. What do I really want?

Option-1: I do not have to be bothered for care of my parents. Parents take care of themselves.

Option-2: I perform my duty towards parents as per my religion.

Option-3: My being responsible towards my parents and elders with a sense of gratitude. My serving them and taking care of them in their old age. 


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१९. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : जितना मर्जी स्वादिष्ट भोजन करूँ|
विकल्प-२ : कम से कम खाऊँ|
विकल्प-३ : अपने शरीर की अवस्था के अनुरूप पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन करूँ|
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19. What do I really want?

Option-1: Eat tasty food as much as I want.
Option-2: Eat frugally.
Option-3: Eat nutritious and tasty food based on my body’s condition. 


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२०. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : कोई परंपरा न रहे|

विकल्प-२ : मेरे धर्म की परंपरा रहे|

विकल्प-३ : मानवीयता की सार्वभौम परंपरा में मैं जियूं और उसको आगे बढ़ाऊँ|
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20. What do I really want?

Option-1: There is no tradition.

Option-2: Tradition of my religion.

Option-3: Live and further the universally acceptable tradition of humanness for all human beings. 


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२१. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मेरे व्यवसाय और मौज-मस्ती में कोई प्राकृतिक व्यवधान न हो| 
विकल्प-२ : मेरे जीने से धरती को कम नुकसान पहुंचे और बाकी सब भी वैसा ही करें|
विकल्प-३ : धरती मेरे समृद्धि पूर्वक जीने से और सुन्दर बने|
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21. What do I really want?

Option-1: Nature does not cause hindrance to my business or fun.
Option-2: I minimize damage to Earth by my living and everyone does the same way.
Option-3: Earth gets enriched by my living on it with prosperity. 


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२२. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मेरे बच्चे सबसे प्रतिष्ठित और महंगे स्कूलों और कालेजों में पढ़ें| स्कूल उनको प्रतिस्पर्धा में जितने योग्य बनाएँ|

विकल्प-२ : अगली पीढ़ी में धर्म के प्रति आस्था बनी रहे| स्कूलों में मेरे धर्म की बातें पढाई जाएँ|

विकल्प-३ : शिक्षा ऐसी हो जिससे अगली पीढ़ी उस आत्मविश्वास से जी सके जो वास्तविकता की समझ से आता है| शिक्षा का मानवीयकरण हो|
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22. What do I really want?

Option-1: My children to get education from the most prestigious schools and colleges. Schools should make children more competitive.

Option-2: The next generation conforms to the tradition of my religion. Schools should teach according to my religion.

Option-3: Education to enable next generation to live with self confidence which comes from understanding of reality. Humanization of Education.


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२३. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : इस संसार में जिसकी "जो भी" मर्जी हो वो वह कर सके| 
विकल्प-२ : सारा संसार एक परिवार जैसा हो, मेरे धर्म के अनुसार|
विकल्प-३ : मानवीयता और वास्तविकता की समझ के आधार पर अखंड-समाज बने, जिसमें सर्व -शुभ हो|
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23. What do I really want?

Option-1: Everyone in the world to be free to do “whatever” he or she likes to do.

Option-2: Entire world as one family by conforming to my religion.

Option-3: Undivided Society based on Humanness and universal understanding of reality. 


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२४. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मेरी जरूरतों के लिए आवश्यक सभी सिस्टम ठीक से काम करें| सिस्टम अधिकांशत: यंत्रों द्वारा स्वचालित हों| 

विकल्प-२ : सभी सिस्टम मेरे धर्म की नीतियों का पालन करें|

विकल्प-३ : सभी सिस्टम समझदार मानवों की उदार और स्वयं-स्फूर्त भागीदारी से चले|
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24. What do I really want?

Option-1: The systems to deliver their services seamlessly as per my requirements, with maximum automation.

Option-2: The systems to follow guidelines from religion.

Option-3: All the systems to function with the spirit of generous and voluntary participation of human beings. 


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२५. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१: मैं जिसको "सही" कहता हूँ, सभी उसका पालन करें|

विकल्प-२ : मैं अपने धर्म का उपदेश बड़े प्रभावशाली तरीके से दे सकूं|

विकल्प-३ : मैं दूसरों के जीने में हस्तक्षेप किये बिना, दया पूर्वक उनके विकास में सहयोगी हो सकूं| इसके लिए अपने जीने से उदाहरण दूं|
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25. What do I really want?

Option-1: My view of “right” is obeyed by all.

Option-2: I give sermons of my religion in a very effective manner.

Option-3: Being kind and supportive for advancement of others without interfering into their lives, while giving examples from my own living. 


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अगला प्रश्न है...

२६. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : हर लेन-देन में मुझे लाभ हो| 

विकल्प-२ : मैं लेन-देन में तटस्थ बना रहूँ|

विकल्प-३ : हर लेन-देन के उपरांत मैं और दूसरा व्यक्ति दोनों संतुष्ट हों|
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26. What do I really want?

Option-1: I profit in every give and take.

Option-2: I remain detached from every give and take.

Option-3: I, as well as the other person, feel satisfied after every give and take. 


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अगला सवाल है...

२७. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : बिना कुछ स्वयं सीखे या मेहनत किये मेरा सब काम हो जाये| 

विकल्प-२ : मुझे अपनी आजीविका के लिए कोई व्यवसाय न करना पड़े|

विकल्प-३ : अपने व्यवसाय के लिए जो भी हुनर चाहिए वे मेरे पास हों और मैं उसके लिए आवश्यक श्रम करूँ|
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27. What do I really want?

Option-1: I get the jobs done without having to acquire any skills and doing any hard work myself.

Option-2: I don’t have to engage in any occupation for my livelihood.

Option-3: My having all the necessary skills and my doing the required hard work for my occupation.


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अगला सवाल ...

२८. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : हर नई जानकारी और खोज मेरे नाम पेटेंट हो, हर विशेषज्ञता मेरे अधिकार में हो|

विकल्प-२ : मेरे धर्म शास्त्रों में जो लिखा है उसके पक्ष में ही सारी नई जानकारियाँ और खोजें हों|

विकल्प-३ : सारी नई जानकारियाँ और खोजों का सामान्यीकरण ताकि हर कोई इसका लाभ ले सके|
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28. What do I really want?

Option-1: Specialization and patenting of all innovations and new learning for my benefit.

Option-2: All innovations and new learning to reconfirm and support what is written in my religious scriptures.

Option-3: Generalization of all innovations and new learning for everyone’s benefit.


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२९. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : मेरा चयन मेरे भले के लिए हो, चाहे दूसरों का कुछ भी होता रहे|

विकल्प-२ : मेरा चयन मेरे धर्म शास्त्रों के अनुसार हो|

विकल्प-३ : मेरा चयन सर्वशुभ के अर्थ में हो जिसमें स्वशुभ समाया हो|
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29. What do I really want?

Option-1: Making those choices which ensure my own benefit, irrespective of what happens to others.

Option-2: Making choices as prescribed (dos and don’ts) in my religious books.

Option-3: Making those choices which have good of all, including mine. 


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अगला और आखरी प्रश्न....

३०. मैं वास्तव में चाहता क्या हूँ?

विकल्प-१ : किसी भी झगड़े में मैं "सही" का पक्ष लूं और "गलत" के साथ अपनी पूरी शक्ति के साथ लड़ूं| जब तक "गलत" पूरी तरह परास्त ना हो जाये| 

विकल्प-२ : किसी भी झगड़े में मैं अपने धर्म वालों का पक्ष लूं और अपने धर्म के उसूलों को स्थापित करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करूँ|

विकल्प-३ : किसी भी झगड़े में मैं वास्तविकता की समझ में टिका रहूँ और बिना पक्षपात के व्यवस्था को लाने का प्रयास करूँ|
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30. What do I really want?

Option-1: In a situation of conflict, I take the side of “right” and fight the “wrong” with all my might, until the “wrong” is clearly defeated.

Option-2: In a conflict, I take the side of my religion and work with all my might for upholding its principles.

Option-3: In a conflict, I remain rooted in understanding of reality and try to bring orderliness without taking sides. 


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क्या आपने ऊपर दिए प्रश्नों को अपने लिए उत्तरित करने का प्रयास किया?
आपको कैसा लगा?

क्या आपको अपने उत्तरों में कोई पैटर्न उभरता हुआ दिखता है?

आपने अधिकांश प्रश्नों के लिए विकल्प-१ को चुना या विकल्प-२ या फिर विकल्प-३ को? क्या आपके पास कोई चौथा विकल्प भी था- जो आपके अनुसार इन तीनों विकल्पों से बेहतर है?

इन ३० प्रश्नों के उत्तर एक पन्ने पर लिख लीजिए और फिर देखिये-क्या यह वही है जिसे आप अपनी जिंदगी में वास्तव में चाहते हैं?
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Did you try answering the above questionnaire for yourself?
What did you discover?

Do you see any pattern emerging in your responses to these questions?

What was your choice for most questions - Option-1, Option-2, or Option-3?
Did you have an Option-4 for any of these questions – which you think would be better than the three provided answers?

List down your answers for the 30 questions on a sheet of paper and see if that’s what you really want in your life? 



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इससे पहले क्या आपको पता था कि आप यह सब चाहते थे? क्या कुछ और भी है जिसे आप चाहते हैं-पर वह इस लिस्ट से इंगित अर्थ में नहीं आया है यदि ऐसा है तो उसे भी लिख लें और मुझे उसके बारे में ईमेल लिख कर बताएं| rakesh2715@gmail.com

"जो आप वास्तव में चाहते हैं" उस बिंदु की "आप जहाँ खड़े हैं" उस बिंदु से आप स्वयं को कितना दूर या नजदीक महसूस करते हैं?
क्या आप के पास "जो वास्तव में चाहते हैं" उसको पाने के लिए कोई योजना है?
आपको क्या लगता है आपकी योजना क्या जमीनी सच्चाइयों से जुड़ी है?

क्या आप अपनी योजना के अनुसार प्रगति से संतुष्ट हैं?
(क्रमश:)
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Did you know that you really wanted all this before taking this questionnaire?
Is there anything else that you really want, which hasn’t been captured directly or indirectly in this list? Please add that into your list and drop me an email about it. rakesh2715@gmail.com
How far or near do you find yourself from what you really want from where you really are at present?
Do you have a plan for achieving what you really want?
Do you think your plan is realistic?
Are you happy with your plan and your progress thus far?


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यदि आपके पास अपनी वास्तविक चाहनाओं को पाने के लिए एक जमीनी सच्चाइयों से जुड़ी योजना है और उसको लेकर अपनी प्रगति से आप संतुष्ट हैं तो मैं सोचता हूँ| यह एक बहुत अच्छी स्थिति है और मैं आपको शुभकामनायें देता हूँ कि आपकी यह स्थिति बनी रहे और आप सफलता को पायें| यदि ऐसा नहीं है तो आपको अभी और विचार करने की आवश्यकता है| बाकी का लेख मेरे जैसे उन लोगों के लिए है जिनको अभी और विचार करने की आवश्यकता लगती है|

यदि मेरी चाहत और मेरी वर्तमान स्थिति के बीच बहुत दूरी मुझे लगती है तो यह बात मुझे परेशान तो करती है यह परेशानी और बड़ी होती है जब मैं यह पाता हूँ कि मेरे पास जमीनी सच्चाइयों से जुड़ी योजना नहीं है| इस परेशानी का निराकरण करने का उपाय यही है कि एक जमीनी सच्चाइयों से जुड़ी हुई योजना बनाई जाये| (क्रमश:)
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If you have a realistic plan for achieving what you really want in your life and you are happy with your progress thus far – I think, that’s very good state of being and I wish you all the very best for its continuity and your success. Otherwise you have a need to think further. What follows is for those readers (like me) who feel the need to think further.

It does feel uncomfortable if there is a huge gap between what I really want and where I am at present. This feeling is more acute if I don’t have a realistic plan. This feeling can be replaced with a sense of optimism only if I make a realistic plan for achieving what I really want in my life.


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जमीनी सच्चाइयों से जुड़ी हुई योजना
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योजना का आधार दृष्टिकोण होता है| जाने-अनजाने हम एक दृष्टिकोण को लेकर चल ही रहे हैं- जो निम्न तीन प्रश्नों के उत्तर को लेकर हमारी स्वीकृतियां हैं|

(१) मैं क्या हूँ?
(२) यह संसार क्या है?
(३) सुख क्या है? (दूसरे शब्दों में - मेरे "होने" का प्रयोजन क्या है?)
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Realistic Plan for Life
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How should we go about making a realistic plan for our lives? Planning can be done on the foundation of a worldview. Unknowingly or knowingly, we have a worldview – which is our acceptance about the following three questions.

(1) What am I?
(2) What is this world?
(3) What is Happiness? (Which is same as asking - What is my purpose? Or Why am I?)


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३० प्रश्नों की उपरोक्त लिस्ट में विकल्प-१ वाले उत्तर भौतिकवादी दृष्टिकोण को इंगित करते हैं|
भौतिकवाद के अनुसार –

(१) मैं शरीर हूँ|
(२) यह संसार शरीर के लिए भोग्य वस्तु है|
(३) भोगने में सुख है –इसलिए अधिकाधिक संग्रह करना चाहिए| भौतिकवादी दृष्टिकोण भोगवाद, व्यक्तिवाद, असमानता, संघर्ष, शक्ति केंद्रित शासन और समाज, प्रदूषण और पर्यावरण असंतुलन की ओर ले जाता है|
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Option-1 responses for all the 30 questions in the questionnaire indicate the worldview of Materialism.

Materialism accepts –
(1) I am a body.
(2) This world is a resource for body.
(3) Happiness is from consumption of resources for sensory pleasure, therefore accumulation of resources should be maximized. Manifestation of this worldview is in the form of consumerism, individualism, inequality, conflict, power centric organization of society, pollution and imbalance in environment.


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विकल्प-२ वाले उत्तर आदर्शवादी दृष्टिकोण की ओर इंगित करते हैं|
आदर्शवाद के अनुसार –

(१) “मैं” एक भ्रम है|
(२) संसार एक भ्रम है|
(३) ईश्वर ही एकमात्र सत्य है|
“मैं” और “संसार” के भ्रम से मुक्त होने पर और ईश्वर में विलीन हो जाने में सुख है| यह दृष्टिकोण स्वयं और समाज से विरक्ति, अन्धविश्वास और रूढ़ियों पर टिकी सामाजिक व्यवस्था की ओर ले जाता है|
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Option-2 responses indicate the worldview of Idealism/spiritualism. Idealism/spiritualism accepts –

“I am” is an illusion.
World is an illusion.
God is the only Truth. Happiness is upon freedom from the illusion of “I” and “world” and being one with God.

Manifestation of this worldview is in the form of detachment towards self and society, society mired with blind faith in myths, religion (dogmas) based social organization.


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विकल्प-३ वाले उत्तर सह-अस्तित्ववाद दृष्टिकोण (मध्यस्थ दर्शन) को इंगित करते हैं|
सह-अस्तित्वाद के अनुसार-

(१) मैं जीवन और शरीर के संयुक्त स्वरुप में एक मानव हूँ|
(२) अस्तित्व सह-अस्तित्व है|
(३) सह-अस्तित्व को समझने और उसके अनुसार जीने में सुख है जिससे मानव के होने का प्रयोजन सिद्ध होता है|
यह दृष्टिकोण स्वयं में समाधान, परिवार में समाधान-समृद्धि, समाज में समाधान-समृद्धि-अभय और प्रकृति में संतुलन की निरंतरता की ओर ले जाता है|
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Option-3 responses indicate the worldview of Coexistentialism (Madhyasth Darshan).
Coexistentialism accepts –
I am a human being as combined expression of jeevan (conscious unit) and body.
Existence is coexistence.

Happiness is from understanding coexistence and living accordingly, thus fulfilling human purpose. Manifestation of this worldview is in the form of resolution in self, prosperity in family, harmony in society and balance in nature.


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यदि आपने विकल्प-३ को चुना है तो आगे पढ़िए|

भौतिकवाद (विकल्प-१) और आदर्शवाद (विकल्प -२) के बारे में और जानकारी आपको अन्य स्त्रोतों से मिल सकती है|

विकल्प-३ को वास्तव में पाया जा सकता है|

मध्यस्थ दर्शन (जीवन विद्या) पर आधारित सह-अस्तित्ववाद श्री ए. नागराज, अमरकंटक द्वारा प्रतिपादित किया गया है| इसमें प्रतिपादित है कि विकल्प-३ से इंगित चाहत हर मानव की सहज अपेक्षा है और अस्तित्व में इसके पूरे होने का प्रावधान है| मध्यस्थ दर्शन (जीवन विद्या) अस्तित्व (जो है) के अध्ययन का प्रस्ताव है| इसके प्रतिपादन तीन शीर्षों के अंतर्गत है|
(१) अस्तित्व दर्शन ज्ञान
(२) जीवन ज्ञान
(३) मानवीयता पूर्ण आचरण ज्ञान
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Read on, if your choice is Coexistentialism (Option- 3). You can get more details on Materialism (Option-1) or Idealism/Spiritualism (Option-2) from other sources.

The Option-3 is for Real.

Coexistentialism based on Madhyasth Darshan (Jeevan Vidya) is propounded by Shree A. Nagraj, Amarkantak. It proclaims - Option-3 is natural expectation of every human being, and there is provision in existence for its fulfillment.

Madhyasth Darshan (Jeevan Vidya) is a proposal for understanding existence (all that is). The postulations of this proposal are under three headings:

(1) Knowledge of Existence
(2) Knowledge of Jeevan (self)
(3) Knowledge of Conduct of Humanness.


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इस प्रस्ताव (सह-अस्तित्ववाद) का प्रमाण वे लोग हैं जो इस समझ के अनुसार जी रहे हैं| ऐसे जीने का स्वरुप ही विकल्प-३ द्वारा इंगित होता है| पहले व्यक्ति जिन्होंने स्वयं को “प्रमाण” के रूप में घोषित किया वे इस प्रस्ताव के प्रणेता स्वयं (श्री नागराज) हैं| अब अनेक ऐसे व्यक्ति तैयार हो गए हैं जो इस प्रस्ताव को समझ चुके हैं और इसको अपने जीने में लाने के क्रम में हैं|

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The evidence of this proposal’s truth is human beings who are living this understanding, indicated by Option-3 choices in this article. First person who declared himself to be “the living evidence” of this proposal is Shree A. Nagraj himself. Now there are many people who have understood this proposal and are in the process of evidencing it in their living.

By Respected brother Rakesh ji.


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इस मार्ग के निम्न चरण हैं|
पहला है- ध्यान से सुनना….

इस पूरे प्रस्ताव को ध्यान से सुनना, बिना पिछला कुछ सन्दर्भ जोड़े हुए| पिछले सन्दर्भ या तो “भौतिकवाद” से होंगें या तो “आदर्शवाद” से|
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What are the steps of this path for achieving what I really want?

Listen to the proposal fully – without having any prior references. Prior references would essentially be either “Materialism” or “Idealism/Spiritualism.”


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अध्ययन का मतलब है – शब्द से अस्तित्व में वस्तु के रूप में अर्थ को पहचानना| इस प्रस्ताव को संप्रेषित करने में प्रयुक्त शब्दों को परिभाषित किया गया है| विद्यार्थी अध्यापक के मार्ग-दर्शन में अपनी कल्पनाशीलता के प्रयोग से वास्तविकताओं को पहचानता है और साथ ही इस प्रस्ताव के अनुरूप जीने का अभ्यास करता है| अध्ययन के फलस्वरूप विद्यार्थी सह-आस्तित्व में अनुभव करता है- जो कि कल्पनाशीलता का तृप्ति-बिंदु है| 

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Study is the process of recognizing realities from the words used for indicating them. The words used in this proposal have been defined to indicate realities in existence. The student recognizes realities using his imagination with able guidance of teacher, while practicing to live according to the proposal. Study results in realization in coexistence – which is the point of imagination’s fulfillment.


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अनुभव संवेद्नागत तथ्य नहीं है| अनुभव अस्तित्व के नित्य नियमों में होता है| सह-अस्तित्व में अनुभव मानव द्वारा अपने जीने में सत्य को प्रमाणित करने की योग्यता है जिससे वह उसको पा सकता है जिसे वह वास्तव में चाहता है| हर मानव की मूल चाहना या वास्तविक चाहना “सुख” है| सह-अस्तित्व में अनुभव ही सुख है|
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Realization is not same as experience. Experience happens in the purview of senses, while realization is in knowledge of the unchanging laws of existence. Realization in coexistence is the capability of evidencing truth in human living and thereby achieving what one really wants. (Happiness)


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अनुभव को अपने रोजमर्रा के जीने में प्रमाणित करना अगला कदम है| अनुभव और प्रमाण कोई “विशेष” बात नहीं है यह हर व्यक्ति के सुख या समाधान पूर्वक जीने के लिए एक आवश्यकता है| इस प्रकार प्रमाण स्वरूप में जीता हुआ मानव अन्य लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन जाता है ताकि वे भी उस सब को पा सकें जिसे वे मूलत: चाहते हैं|

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Evidence the realization in everyday living Human being with such understanding and realization becomes able to inspire others from examples of his/her own living, so that others can also achieve what they really want in their lives.


Shared by respected brother Rakesh Gupta ji.

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यदि आप इन सभी बातों से सहमत हैं और मध्यस्थ दर्शन के बारे में और अधिक जानकारी चाहते हैं तो कृपया इन लिंकों के माध्यम से और और अधिक सूचना प्राप्त की जा सकती है|

Introduction

http://madhyasth-darshan.info/introduction/

Read this first

http://madhyasth-darshan.info/introduction/about/read-this-first/

Study Locations

http://madhyasth-darshan.info/activities/study-locations/

Jeevan Vidya - A Study in Coexistence (जीवन विद्या - सह-अस्तित्व में अध्ययन)

http://madhyasth-darshan.blogspot.in/

http://madhyasth-darshan-daily.blogspot.in/

https://www.youtube.com/channel/UCelmyUrTDCMAff6MgDZgBFg